Friday, September 16, 2022

अभ्यंग करें, स्वस्थ रहें।


*अभ्यंग करें, स्वस्थ रहें*
 
अभ्यंग या मालिश से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। जैसे शिशु की मालिश से भी उसके संपूर्ण व शीघ्र विकास को गति मिलती है। तन सुडौल, ताकतवर, स्वस्थ और सुदृढ़ बनता है। उसी प्रकार अभ्यंग (मालिश) हमारे तन और मन की ऊर्जा के संतुलन के साथ तापमान को नियंत्रित करने हेतु काफी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा रक्त प्रवाह के सुचारु होने के कारण ढेरों शारीरिक व्‍याधियां दूर हो जाती हैं। इसके चलते तन-मन की रंगत को बरकरार रखने वाले सभी द्रव्यों में सुधार होता है। अभ्यंग का नियमित प्रयोग सेहत के लिए वरदान के समान है।
अभ्यंग : वायु तत्व चिकित्सा के तहत बहुउपयोगी अभ्यंग को आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण माना गया है। आयुर्वेद में अभ्यंग को मांसपेशियों में ताकत, शांति, निद्रा सुख, वात-कफ के दमन, व सेहतमंद शरीर, तन की शुद्धता, टिशू के उपचारार्थ व कुशल पोषण हेतु बहुउपयोगी माना गया है। सौंदर्य उपचारों में भी इसकी खास विशेषता है। यही वजह है कि एलोपैथी के जन्मदाता हिप्पोक्रेटिक भी अपनी रचनाओं में मालिश को प्रमुखता देते हैं और आजीवन मालिश और व्यायाम को अपना हिस्सा बनाए रखे। 
 
*वात, पित्त, कफ में उपयोगी*
 
वात : अभ्यंग वात, पित्त, कफ तीनों ही प्रकृति के लोगों के लिए उपयोगी माना जाता है। ऐसे वात प्रकृति के लोगों के लिए अभ्यंग काफी उपयोगी माना जाता है। स्पर्श की संवेदना वात प्रकृति वालों में अधिक होने के कारण वह शुष्क और ठंडी प्रकृति के होते हैं। ऐसे में हर रोज सुबह तेल से अभ्यंग करना और शाम को गुनगुने जल से नहाना से पहले गरम तेल से मालिश काफी गुणकारी होती है। ऐसे लोग तिल का तेल के अलावा अश्वगंधा तेल, धन्वन्तरम तेल, महानारायण तेल, दशमूल तेल, बल तेल आदि का उपयोग कर सकते हैं। 
पित्त : पित्त प्रकृति वालों की प्रकृति गर्म और तैलीय होने के चलते उनकी त्वचा अति संवेदनशील होती है। ऐसे में इनके लिए शीतलता जरूरी है, जिनके लिए नारियल, सूरजमुखी व चन्दन आदि का तेल लाभदायक होता है। चंदनादि तेल, इलादी तेल का अभ्यंग फायदेमंद साबित होता है। 
कफ : इससे संबंधित लोगों की भी प्रकृति ठंडी और तैलीय होती है। ऐसे में ये आयुर्वेदिक पाउडर का प्रयोग करें तो लाभकारी होगा। इसके अलावा यदि मालिश करना हो तो सरसों या तिल का तेल अच्‍छा विकल्‍प होगा। कफ के असंतुलन की अवस्था में विल्व और दशमूल का तेल गुणकारी होता है। मालिश करते वक्‍त ध्‍यान दें कि आपके हाथों की गति तेज और गहरी हो तथा शरीर के बालों की दिशा के विपरीत रहे तो उत्तम होगा। तेल कम, मालिश अधिक को सूत्र समझें।  
लाभ : बदलते मौसम का प्रभाव हो या फिर अनुचित आहार-विहार या रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, आपका शरीर ऐसे में बीमार हो सकता है। शारीरिक व मानसिक समस्या पैदा हो सकती है। ऐसे में अभ्यंग इन सभी समस्याओं का निवारण साबित होता है। यही वजह है कि आज भारत में केरल, चीन, जापान व यूरोपीय देशों में मालिश विशेषज्ञों की मांग तेजी से बढ़ी है। जो लोग अभ्यंग को नियमित जीवन का हिस्सा बनाते हैं उनकी उम्र में वृद्धि, वृद्धावस्था से दूरी, दृष्टि दोष में सुधार, पूर्ण पोषण, गहरी नींद, त्वचा में रंगत, मजबूत मांसपेशियां, उमंग, उत्साह, ऊर्जा व थकान से दूरी का लाभ तत्काल मिलता है। 
 
*विशेष ध्यान रखें कि-* अभ्यंग हमेशा भोजन करने के दो घंटे बाद ही करें। सिर से मालिश शुरू करें और पैरों पर खत्म करें। स्नान से पहले ही मालिश करके 20 से 25 मिनट तक तेल को शरीर पर बने रहने दें और मालिश लगातार या व्यायाम करते रहें ताकि गर्माहट बनी रहे। इसके बाद गुनगुने पानी से स्नान लाभदायक साबित होता है।
*विशेष लाभ -*
ठंड में लाभदायक 
ठंड यानी जाड़े के मौसम में अभ्यंग के लाभ काफी होते हैं। यह रक्‍त संचार को दुरुस्‍त रखने के अलावा दृष्टि और सहनशक्ति को बढ़ाता है। इम्‍यूनिटी बढ़ाने के साथ बाल, त्‍वचा, मांसपेशियां आदि सभी निरोगी, ताकतवर, चमकदार होते हैं। टिशू, हड्डियों व जोड़ों में ताकत आती है। ठंड में थकान, कमजोरी और आलस्य तो बिलकुल दूर कर देता है ये अभ्यंग।
सावधानी - खांसी, बुखार, अपच, संक्रमण, त्वचा पर दाने, भोजन के तुरंत बाद, शोधन के पश्चात व मासिक धर्म के समय अभ्यंग बिल्‍कुल न करें।  

- डॉ राजेश बतरा ।
*विशेष जानकारी हेतु संपर्क -*
वेलनेस केयर, योग प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेद केंद्र
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Monday, September 12, 2022

मूत्र रोगों में लाभकारी - चंदनासव

Awareness Post 105/22
*मूत्र रोगों में लाभकारी - चंदनासव*
 
आर्युवेदिक औषधि चन्दनासव मूत्र संबंधी कई बीमारियों से सुरक्षित रखने में बेहतर विकल्प  है।
*चन्दनासव का परिचय एवं लाभ -* आसव विधि से तैयार यह आयुर्वेदिक औषधि सिरप के रूप में बाजार में उपलब्ध है। यह पुरुषों में वीर्य स्त्राव, पेशाब में जलन, संक्रमण और महिलाओं में लिकोरिया जैसी दिक्कत को दूर करने में गुणकारी मानी जाती है। पुरुष वर्ग इसे मूत्र संबंधी परेशानियों में ग्रहण कर सकते हैं। वहीं वीर्य स्त्राव से संबंधित विकार को दूर करने में भी यह औषधि लाभदायक मानी जाती है। इसके सेवन से गुर्दा, मूत्राशय व मूत्रमार्ग में संक्रमण से राहत पहुंचती है। वहीं महिलाएं लिकोरिया रोग से बचने के लिए चन्दनासव का लाभ उठा सकती हैं। वहीं श्वेत प्रदर की समस्या अधिकतर महिलाओं में आम बात है, जिससे यह औषधि छुटकारा दिलाने में सहायक है। यह शरीर में गर्मी और जलन से छुटकारा दिलाते हुए अपने शीतल गुण से राहतदेय है। यह हाथ, पैर व शरीर में कहीं भी जलन महसूस होती है, वहां फायदेमंद है। इसके अलावा किडनी के फिल्टर सिस्‍टम को खराबी से दूर रखते हुए पथरी जैसी दिक्कत से भी रक्षा करती है। रक्त पित्त (नकसीर) से संबंधित दिक्कत से बचाव में भी चन्दनासव उपयोगी मानी जाती है। चंदनासव  सिरप में मौजूद धातकी पुष्प, धात्रा, शक्कर, रसना, कचुर, गुड़, पटोल्पत्र, कंचनारत्व, मोचरस, सफेद चंदन, रक्त चंदन, नीलकमल पुष्प,  पिर्यंगपुष्प, परपत,  नागरमोथा, गंभारी, लोधरतव, मुलाथी, सुगंधबाला, चिरौता इत्‍यादि मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं।
सावधानी - यहां यह समझ लें कि कोई भी औषधि के सेवन से पूर्व अपने शरीर के अनुरूप चिकित्सक की सलाह आवश्यक होती है। मधुमेह के रोगी इसके सेवन से पूर्व चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
- डॉ राजेश बतरा ।
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