Wednesday, April 30, 2025
अक्षय तृतीया और आयुर्वेद
Monday, April 28, 2025
ग्रीष्म ऋतु में आयुर्वेद अनुसार आहार विहार
ग्रीष्म ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार आहार-विहार
परिचय
भारतीय परंपरा में ऋतुचक्र का विशेष महत्व है। आयुर्वेद, जो प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली अपनाने की शिक्षा देता है, ऋतुओं के अनुसार आहार-विहार में परिवर्तन का सुझाव देता है। ग्रीष्म ऋतु (गर्मी का मौसम) में सूर्य की तीव्रता बढ़ती है और वातावरण में शुष्कता एवं ताप बढ़ जाता है। इस मौसम में शरीर का अग्नि (पाचन शक्ति) कमजोर हो जाता है, इसलिए उचित आहार और विहार का पालन अत्यंत आवश्यक है।
ग्रीष्म ऋतु में आहार
हल्के एवं ठंडे आहार का सेवन करें
इस ऋतु में भारी, गरिष्ठ और तले-भुने भोजन से बचना चाहिए। भोजन हल्का, सुपाच्य और शीतल प्रकृति का होना चाहिए। जैसे - मूंग दाल, चावल, दूध, दही, छाछ, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा आदि का सेवन करें।तरल पदार्थों का अधिक सेवन करें
शरीर में जल संतुलन बनाए रखने के लिए नारियल पानी, बेल का शरबत, आम पना, नींबू पानी, सत्तू का घोल और पतले मठ्ठे का उपयोग करना लाभकारी होता है।तीखे, खट्टे और अधिक नमकीन भोजन से बचें
ये तत्व शरीर में गर्मी और पित्त को बढ़ाते हैं, जिससे शरीर में जलन, त्वचा रोग और अपच जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।फल और सब्जियाँ
ग्रीष्म ऋतु में रसयुक्त, शीतल प्रभाव वाले फल जैसे तरबूज, खरबूजा, अनार, जामुन, आम, लीची आदि का सेवन करें। हरी सब्जियाँ जैसे लौकी, तुरई, टिंडा, परवल आदि भी लाभकारी हैं।भोजन का समय
दिन में भोजन हल्का और रात में अत्यंत हल्का एवं सुपाच्य लेना चाहिए। भूख से थोड़ा कम खाना चाहिए ताकि पाचन तंत्र पर अधिक भार न पड़े।
ग्रीष्म ऋतु में विहार
विश्राम और समय पर सोना
दिन में अधिक श्रम करने से शरीर में ऊष्मा बढ़ती है, इसलिए दोपहर में हल्का विश्राम करना लाभकारी माना गया है। रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना उत्तम है।वातावरण का ध्यान
अत्यधिक धूप में बाहर जाने से बचें। छायादार स्थानों पर रहें और ठंडी हवा का सेवन करें। यदि आवश्यक हो तो सिर पर कपड़ा या छाता रखें।पहनावा
हल्के, ढीले और सूती वस्त्र पहनें जो शरीर को सांस लेने दें और पसीना आसानी से सोख लें।अभ्यंग (तेल मालिश)
तिल या नारियल तेल से नियमित मालिश करने से त्वचा में नमी बनी रहती है और शरीर में ठंडक का अनुभव होता है।व्यायाम में संयम
भारी व्यायाम से बचना चाहिए। हल्का-फुल्का योग, प्राणायाम और ध्यान करना अधिक उपयुक्त है।सुगंधित जल का प्रयोग
नहाने के पानी में गुलाबजल या चंदन का प्रयोग करना शीतलता प्रदान करता है और शरीर को ताजगी का अनुभव कराता है।
निष्कर्ष
आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में जीवनशैली में संतुलन और संयम अत्यंत आवश्यक है। यदि आहार और विहार में उपयुक्त परिवर्तन किए जाएँ, तो शरीर प्राकृतिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है। प्रकृति के नियमों का पालन कर हम न केवल ऋतुजन्य रोगों से बच सकते हैं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ कर सकते