Wednesday, April 30, 2025

अक्षय तृतीया और आयुर्वेद

अक्षय तृतीया और आयुर्वेद का संबंध
- डॉ राजेश बतरा 

अक्षय तृतीया, जिसे 'आखा तीज' भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह एक अत्यंत पवित्र और शुभ दिन माना जाता है, जिस दिन कोई भी कार्य प्रारंभ करना अत्यंत फलदायक होता है। इस दिन का विशेष महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से तो है ही, साथ ही इसका गहरा संबंध आयुर्वेद और स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है।

अक्षय तृतीया का आयुर्वेद से संबंध
वैशाख माह को आयुर्वेद में ऋतु परिवर्तन का समय माना गया है, जब ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है। यह मौसम शरीर में वात, पित्त और कफ दोषों के संतुलन को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार, ग्रीष्म ऋतु में शरीर की अग्नि (पाचन शक्ति) मंद पड़ जाती है, जिससे पाचन तंत्र कमजोर हो सकता है। ऐसे में शरीर को शीतलता और ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य एवं जीवनशैली की आवश्यकता होती है।

अक्षय तृतीया के दिन पारंपरिक रूप से जो आहार लिए जाते हैं, जैसे जौ (यव), चने, खस-खस, बेल का शरबत, आम का पना, और ठंडी चीजें, वे सभी आयुर्वेद के अनुसार पित्त शमन करने वाले होते हैं। इनका सेवन शरीर में शीतलता बनाए रखता है और गर्मियों में होने वाली बीमारियों जैसे लू, डिहाइड्रेशन, और पाचन विकारों से रक्षा करता है।

इस दिन के आयुर्वेदिक परंपराएं:
गंगा स्नान और शरीर शुद्धि: अक्षय तृतीया पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। आयुर्वेद में स्नान को शरीर की शुद्धि का एक आवश्यक अंग माना गया है, जो त्वचा विकारों को दूर करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।

दान और उपवास: इस दिन उपवास और सात्विक भोजन का महत्व है। उपवास से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर से विषाक्त तत्वों (toxins) का निष्कासन होता है, जिसे आयुर्वेद 'आम दोष' कहता है।

घृत और शीतल औषधियों का प्रयोग: इस दिन गाय के घी, गुलकंद, बेल फल, शीतल जल, और त्रिफला जैसे शीतल प्रभाव वाली औषधियों का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

स्वर्ण और औषधीय धातुओं का महत्व: अक्षय तृतीया पर स्वर्ण खरीदने की परंपरा है। आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म का प्रयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और मानसिक स्फूर्ति के लिए किया जाता है। यह दर्शाता है कि स्वर्ण सिर्फ एक धातु नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है।

निष्कर्ष
अक्षय तृतीया केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह आयुर्वेद और स्वास्थ्य विज्ञान से भी गहराई से जुड़ी हुई है। इस दिन की परंपराएं और आहार-विहार नियम आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो शरीर और मन दोनों की शुद्धि एवं संतुलन को बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसलिए, अक्षय तृतीया न केवल ‘अक्षय पुण्य’ का दिन है, बल्कि यह स्वस्थ जीवनशैली की ओर एक कदम बढ़ाने का भी अवसर है।

Monday, April 28, 2025

ग्रीष्म ऋतु में आयुर्वेद अनुसार आहार विहार

ग्रीष्म ऋतु में आयुर्वेद के अनुसार आहार-विहार

- डॉ राजेश बतरा 

परिचय
भारतीय परंपरा में ऋतुचक्र का विशेष महत्व है। आयुर्वेद, जो प्रकृति के अनुरूप जीवन शैली अपनाने की शिक्षा देता है, ऋतुओं के अनुसार आहार-विहार में परिवर्तन का सुझाव देता है। ग्रीष्म ऋतु (गर्मी का मौसम) में सूर्य की तीव्रता बढ़ती है और वातावरण में शुष्कता एवं ताप बढ़ जाता है। इस मौसम में शरीर का अग्नि (पाचन शक्ति) कमजोर हो जाता है, इसलिए उचित आहार और विहार का पालन अत्यंत आवश्यक है।


ग्रीष्म ऋतु में आहार

  1. हल्के एवं ठंडे आहार का सेवन करें
    इस ऋतु में भारी, गरिष्ठ और तले-भुने भोजन से बचना चाहिए। भोजन हल्का, सुपाच्य और शीतल प्रकृति का होना चाहिए। जैसे - मूंग दाल, चावल, दूध, दही, छाछ, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा आदि का सेवन करें।

  2. तरल पदार्थों का अधिक सेवन करें
    शरीर में जल संतुलन बनाए रखने के लिए नारियल पानी, बेल का शरबत, आम पना, नींबू पानी, सत्तू का घोल और पतले मठ्ठे का उपयोग करना लाभकारी होता है।

  3. तीखे, खट्टे और अधिक नमकीन भोजन से बचें
    ये तत्व शरीर में गर्मी और पित्त को बढ़ाते हैं, जिससे शरीर में जलन, त्वचा रोग और अपच जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।

  4. फल और सब्जियाँ
    ग्रीष्म ऋतु में रसयुक्त, शीतल प्रभाव वाले फल जैसे तरबूज, खरबूजा, अनार, जामुन, आम, लीची आदि का सेवन करें। हरी सब्जियाँ जैसे लौकी, तुरई, टिंडा, परवल आदि भी लाभकारी हैं।

  5. भोजन का समय
    दिन में भोजन हल्का और रात में अत्यंत हल्का एवं सुपाच्य लेना चाहिए। भूख से थोड़ा कम खाना चाहिए ताकि पाचन तंत्र पर अधिक भार न पड़े।


ग्रीष्म ऋतु में विहार

  1. विश्राम और समय पर सोना
    दिन में अधिक श्रम करने से शरीर में ऊष्मा बढ़ती है, इसलिए दोपहर में हल्का विश्राम करना लाभकारी माना गया है। रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना उत्तम है।

  2. वातावरण का ध्यान
    अत्यधिक धूप में बाहर जाने से बचें। छायादार स्थानों पर रहें और ठंडी हवा का सेवन करें। यदि आवश्यक हो तो सिर पर कपड़ा या छाता रखें।

  3. पहनावा
    हल्के, ढीले और सूती वस्त्र पहनें जो शरीर को सांस लेने दें और पसीना आसानी से सोख लें।

  4. अभ्यंग (तेल मालिश)
    तिल या नारियल तेल से नियमित मालिश करने से त्वचा में नमी बनी रहती है और शरीर में ठंडक का अनुभव होता है।

  5. व्यायाम में संयम
    भारी व्यायाम से बचना चाहिए। हल्का-फुल्का योग, प्राणायाम और ध्यान करना अधिक उपयुक्त है।

  6. सुगंधित जल का प्रयोग
    नहाने के पानी में गुलाबजल या चंदन का प्रयोग करना शीतलता प्रदान करता है और शरीर को ताजगी का अनुभव कराता है।


निष्कर्ष

आयुर्वेद के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में जीवनशैली में संतुलन और संयम अत्यंत आवश्यक है। यदि आहार और विहार में उपयुक्त परिवर्तन किए जाएँ, तो शरीर प्राकृतिक रूप से स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है। प्रकृति के नियमों का पालन कर हम न केवल ऋतुजन्य रोगों से बच सकते हैं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ कर सकते