Sunday, December 4, 2022

च्यवनप्राश : कब खाएं, कब नहीं।



Awareness Post 108/22
*च्यवनप्राश : कब खाएं, कब नहीं*
गुणकारी जड़ी-बूटियों, व मसालों से भरपूर च्यवनप्राश अनेक प्रकार के विटामिन, मिनरल व एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है।
च्यवनप्राश में मौजूद औषधियां शरीर की आंतरिक शक्ति का विकास करती हैं। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को दुरुस्त करता है।  यह औषधीय तत्व सर्दी-खांसी जैसे संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने हेतु एक बेहतर विकल्प माना जाता है। मधुमेह रोगी इसका सेवन चिकित्सक की सलाह के पश्चात या फिर शुगर फ्री च्यवनप्राश का इस्तेमाल कर सकते हैं। हर्बल अर्क और प्रसंस्कृत खनिज से निर्मित यह औषधीय तत्‍व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। यह उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु  प्रदान करता है। इसमें मुख्य घटक द्रव्य आंवला होता है। यह श्वास नलियों  का संक्रमण दूर कर मजबूत बनाता है।  पाचन क्रिया को दुरुस्‍त कर कब्ज से मुक्ति में सहायक है। यह ऊर्जा का स्रोत है। यह एक सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक टॉनिक है। च्यवनप्राश रक्‍तचाप को ठीक रखने तथा रक्‍त शोधन हेतु भी गुणकारी है। कोलेस्ट्रॉल को ठीक रख यह हृदय को मजबूती प्रदान करता है।
  संक्रमण से शरीर को सुरक्षित रखता है। 
 च्यवनप्राश को किसी भी समय खाना उचित नहीं माना जाता है। इसके सेवन के भी नियम है। च्यवनप्राश को यदि सुबह के समय खाली पेट दूध के साथ ग्रहण करते हैं तो विशेष लाभकारी है। वहीं अस्थमा या सांस से संबंधित अन्‍य बीमारियों की स्थिति में गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन लाभदायक माना जाता है। इ​​स दौरान दूध और दही का सेवन नहीं करना चाहिए । ध्‍यान रहे कि इसके अधिक सेवन से अपच, अतिसार, पेट में सूजन आदि समस्याएं हो सकती है। इसे हर रोज सुबह और शाम के वक्‍त 1 चम्मच गुनगुने दूध या पानी के साथ पीना व्यस्कों के लिए लाभकारी है। बच्चे इसका आधा ही ग्रहण करें तो अच्‍छा रहेगा। इसे भोजन के आधे घंटे बाद ही खाना अच्‍छा  है। इसमें मौजूद तत्‍वों की तासीर काफी गर्म होती है। ऐसे में इसे सर्दियों में पर्यावरण अनुकूल है तथा शरीर की गर्मी हेतु फायदेमंद होता है। वहीं गर्मियों में आंवला या ठंडे पदार्थों से बने च्यवनप्राश का सेवन अनेकों वायरस और बैक्टीरिया से बचाता हैं तथा दिनभर ऊर्जावान बनाए रखता हैं।
- डॉ राजेश बतरा ।
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Friday, October 14, 2022

आयुर्वेद में बनाएं अपना कैरियर

*आयुर्वेद के क्षेत्र में बनाएं अपना कैरियर* 
 Awareness Post 107/22
बच्चों के करियर यानी भविष्य को लेकर आज अभिभावक व युवा हर वक्त चिंतित रहते हैं। ऐसे में आयुर्वेद आज एक बेहतर विकल्प बनकर उभरा है। वैदिक काल से भरोसे का पर्याय रहा आयुर्वेद जड़ी-बूटियों के वैज्ञानिक प्रयोग व उपचारात्मक गुणों के आधार पर आज दुनिया में भरोसे का केंद्र बन चुका है। वहीं भारत सरकार के आयुष मंत्रालय से मान्यता मिलने के बाद चिकित्सा की दुनिया में आयुर्वेद ने अपना अहम स्थान बना लिया है। ऐसे में आप भी भारतीय आयुर्वेद में शानदार करियर का विकल्प चुनते हुए अपने भविष्य को संवार सकते हैं।
     आयुष विभाग के अनुसार, भारत में इस वक्त सात लाख से अधिक पंजीकृत आयुष डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ‘आयुर’ अर्थात ‘जीवन’ और ‘वेद’ अर्थात ‘ज्ञान’ से बने आयुर्वेद में मानव शरीर की अधिकतर व्याधियों के उपचार मौजूद हैं। स्वस्थ और दीर्घायु जीवन के लिए आयुर्वेद किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसे में आइये जानते हैं कि इसमें आप कैसे करियर बना सकते हैं। सबसे पहले तो इसकी शिक्षा व्यवस्था को जानते हैं। इस क्षेत्र में करियर हेतु अभ्यर्थी किसी भी मान्यता प्राप्त शिक्षा बोर्ड से विज्ञान वर्ग में 12वीं पास होना जरूरी है। इसके बाद आप आयुर्वेद में डिप्लोमा, स्नातक कोर्स (बीएएमएस/बीएसएमएस), परास्नातक (एमबीए/एमडी/एमएस- आयुर्वेद), एमफिल या पीएचडी की उपाधि धारण कर सकते हैं। इसके अलावा आयुर्वेद में तीन व छह माह या फिर एक साल के डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स भी होते हैं जिन्हें आप फुल टाइम या अपने अनुकूल समय के अनुसार कर सकते हैं। आप चाहें तो आयुष विभाग में भी आयुर्वेदिक प्रैक्टिशनर व आयुर्वेदिक थेरेपिस्ट आदि का कोर्स कर खुद को व अपने परिवार तथा समाज को स्वस्थ रख सकते हैं। डिग्री धारक होने के बाद आप शिक्षक, प्रशिक्षक तथा चिकित्सक इत्यादि क्षेत्रों में अपना करियर शुरू कर सकते हैं। 
 
*क्या बन सकते हैं*
 
आयुर्वेद से संबंधित कोर्स करने के बाद अभ्यर्थी आयुर्वेद मेडिकल ऑफिसर, डायरेक्टर – आयुर्वेद, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, प्रबंधक, शोध, रिसर्च अधिकारी, पंचकर्म संचालक, आयुर्वेद फिजिशियन व परामर्शदाता, फार्मासिस्ट, थेरेपिस्ट, नर्स व पब्लिकेशन क्षेत्र में अपना शानदार करियर शुरू कर सकते हैं। आज सरकारी व गैर सरकारी संगठन आयुर्वेद को बढ़ावा देते हुए ढेरों नौकरियां उपलब्‍ध करा रहे हैं। यूपीएससी व पीसीएस के द्वारा बेहतरीन करियर का यह ऑप्‍शन तो है ही, इसके अलावा नेशनल आयुष मिशन, क्लीनिकल या जनरल प्रैक्टिस, शैक्षणिक संस्‍थान, कॉलेज व विश्वविद्यालय आदि में भी ढेरों मौके मिलते हैं। वहीं आयुर्वेद पर बढ़ते भरोसे के चलते आज मेडिकल टूरिज्म में भी इसका महत्‍व बढ़ा है। केंद्र व राज्‍य के शोध संस्‍थान, पंचकर्म सेंटर्स, मेडिकल स्‍टोर, प्रबंधन एवं प्रशासन, सरकारी व गैर सरकारी अस्‍पताल एवं हेल्थकेयर सेंटर्स, दवा निर्माता व फार्मास्यूटिकल कंपनियों आदि में भी जॉब के ढेरों अवसर प्राप्‍त होते हैं। वहीं आयुर्वेद में पब्लिक हेल्थ, कंसल्टेशन, रिसॉर्ट्स, स्पाज़ व बीपीओ तथा केपीओ आदि भी तेजी से उभरते क्षेत्र हैं। 
 
 
*बने एंटरप्रेन्योर* 
 
दादी व नानी के नुस्खे से लेकर आज के संक्रमण काल यानी कोरोना जैसी घातक महामारियों की बात हो तो आयुर्वेद हमेशा ही भरोसेमंद विकल्प रहा है। लोग आयुर्वेदिक उपचार को काफी महत्व देते हैं। यही वजह है कि आज आयुर्वेद की दुनिया में ढेरों एंटरप्रेन्योर उभरे हैं जो आयुर्वेद को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं। औषधियों की खेती, संरक्षण, रखरखाव आदि से लेकर मैन्‍युफैक्‍चरिंग व दवा निर्माण तथा वितरण तक करियर के ढेरों विकल्प युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। आज युवा आयुर्वेदिक दवा निर्माता के अलावा फ्रेंचाइजी आदि की जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अपना उत्पाद बाजार तक पहुंचा रहे हैं। 
 
विदेशों में भी बढ़ी मांग 
 
आज दुनिया के कई देश आयुर्वेद और उसकी औषधियों को मान्यता देने लगे हैं। इसके अलावा विदेशों में स्वस्थ जीवन जीने के लिए योगाचार्य, प्रशिक्षक, मसाज थेरेपिस्ट, फिजिकल थेरेपिस्ट, एक्यूपंक्चर व जड़ी बूटी विक्रेता आदि की मांग बढ़ी है। अमेरिका व ब्रिटेन जैसे विकसित देशों तक में योग अध्यापक तथा थेरेपिस्ट की मांग में बढ़ोतरी देखी जा रही है। वहीं स्वस्थ व उचित आहार हेतु भी पोषण विशेषज्ञ के रूप में विदेशों में युवाओं की मांग बढ़ी है। इसके अलावा श्रृंगार व सौंदर्य प्रसाधन की बात हो तो वहां भी आयुर्वेद ही पहला और अंतिम भरोसेमंद विकल्प बन चुका है। दुनिया के ढेरों संस्थान व विश्वविद्यालय आज आयुर्वेद के लिए शिक्षक आदि का चयन कर रहे हैं। ऐसे में आज आयुर्वेद का दायरा तेजी से बढ़ा है और करियर के तौर पर बेहतरीन विकल्प बनकर उभरा है।
- डॉ राजेश बतरा ।
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Friday, September 16, 2022

अभ्यंग करें, स्वस्थ रहें।


*अभ्यंग करें, स्वस्थ रहें*
 
अभ्यंग या मालिश से शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। जैसे शिशु की मालिश से भी उसके संपूर्ण व शीघ्र विकास को गति मिलती है। तन सुडौल, ताकतवर, स्वस्थ और सुदृढ़ बनता है। उसी प्रकार अभ्यंग (मालिश) हमारे तन और मन की ऊर्जा के संतुलन के साथ तापमान को नियंत्रित करने हेतु काफी उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा रक्त प्रवाह के सुचारु होने के कारण ढेरों शारीरिक व्‍याधियां दूर हो जाती हैं। इसके चलते तन-मन की रंगत को बरकरार रखने वाले सभी द्रव्यों में सुधार होता है। अभ्यंग का नियमित प्रयोग सेहत के लिए वरदान के समान है।
अभ्यंग : वायु तत्व चिकित्सा के तहत बहुउपयोगी अभ्यंग को आयुर्वेदिक चिकित्सा में प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण माना गया है। आयुर्वेद में अभ्यंग को मांसपेशियों में ताकत, शांति, निद्रा सुख, वात-कफ के दमन, व सेहतमंद शरीर, तन की शुद्धता, टिशू के उपचारार्थ व कुशल पोषण हेतु बहुउपयोगी माना गया है। सौंदर्य उपचारों में भी इसकी खास विशेषता है। यही वजह है कि एलोपैथी के जन्मदाता हिप्पोक्रेटिक भी अपनी रचनाओं में मालिश को प्रमुखता देते हैं और आजीवन मालिश और व्यायाम को अपना हिस्सा बनाए रखे। 
 
*वात, पित्त, कफ में उपयोगी*
 
वात : अभ्यंग वात, पित्त, कफ तीनों ही प्रकृति के लोगों के लिए उपयोगी माना जाता है। ऐसे वात प्रकृति के लोगों के लिए अभ्यंग काफी उपयोगी माना जाता है। स्पर्श की संवेदना वात प्रकृति वालों में अधिक होने के कारण वह शुष्क और ठंडी प्रकृति के होते हैं। ऐसे में हर रोज सुबह तेल से अभ्यंग करना और शाम को गुनगुने जल से नहाना से पहले गरम तेल से मालिश काफी गुणकारी होती है। ऐसे लोग तिल का तेल के अलावा अश्वगंधा तेल, धन्वन्तरम तेल, महानारायण तेल, दशमूल तेल, बल तेल आदि का उपयोग कर सकते हैं। 
पित्त : पित्त प्रकृति वालों की प्रकृति गर्म और तैलीय होने के चलते उनकी त्वचा अति संवेदनशील होती है। ऐसे में इनके लिए शीतलता जरूरी है, जिनके लिए नारियल, सूरजमुखी व चन्दन आदि का तेल लाभदायक होता है। चंदनादि तेल, इलादी तेल का अभ्यंग फायदेमंद साबित होता है। 
कफ : इससे संबंधित लोगों की भी प्रकृति ठंडी और तैलीय होती है। ऐसे में ये आयुर्वेदिक पाउडर का प्रयोग करें तो लाभकारी होगा। इसके अलावा यदि मालिश करना हो तो सरसों या तिल का तेल अच्‍छा विकल्‍प होगा। कफ के असंतुलन की अवस्था में विल्व और दशमूल का तेल गुणकारी होता है। मालिश करते वक्‍त ध्‍यान दें कि आपके हाथों की गति तेज और गहरी हो तथा शरीर के बालों की दिशा के विपरीत रहे तो उत्तम होगा। तेल कम, मालिश अधिक को सूत्र समझें।  
लाभ : बदलते मौसम का प्रभाव हो या फिर अनुचित आहार-विहार या रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, आपका शरीर ऐसे में बीमार हो सकता है। शारीरिक व मानसिक समस्या पैदा हो सकती है। ऐसे में अभ्यंग इन सभी समस्याओं का निवारण साबित होता है। यही वजह है कि आज भारत में केरल, चीन, जापान व यूरोपीय देशों में मालिश विशेषज्ञों की मांग तेजी से बढ़ी है। जो लोग अभ्यंग को नियमित जीवन का हिस्सा बनाते हैं उनकी उम्र में वृद्धि, वृद्धावस्था से दूरी, दृष्टि दोष में सुधार, पूर्ण पोषण, गहरी नींद, त्वचा में रंगत, मजबूत मांसपेशियां, उमंग, उत्साह, ऊर्जा व थकान से दूरी का लाभ तत्काल मिलता है। 
 
*विशेष ध्यान रखें कि-* अभ्यंग हमेशा भोजन करने के दो घंटे बाद ही करें। सिर से मालिश शुरू करें और पैरों पर खत्म करें। स्नान से पहले ही मालिश करके 20 से 25 मिनट तक तेल को शरीर पर बने रहने दें और मालिश लगातार या व्यायाम करते रहें ताकि गर्माहट बनी रहे। इसके बाद गुनगुने पानी से स्नान लाभदायक साबित होता है।
*विशेष लाभ -*
ठंड में लाभदायक 
ठंड यानी जाड़े के मौसम में अभ्यंग के लाभ काफी होते हैं। यह रक्‍त संचार को दुरुस्‍त रखने के अलावा दृष्टि और सहनशक्ति को बढ़ाता है। इम्‍यूनिटी बढ़ाने के साथ बाल, त्‍वचा, मांसपेशियां आदि सभी निरोगी, ताकतवर, चमकदार होते हैं। टिशू, हड्डियों व जोड़ों में ताकत आती है। ठंड में थकान, कमजोरी और आलस्य तो बिलकुल दूर कर देता है ये अभ्यंग।
सावधानी - खांसी, बुखार, अपच, संक्रमण, त्वचा पर दाने, भोजन के तुरंत बाद, शोधन के पश्चात व मासिक धर्म के समय अभ्यंग बिल्‍कुल न करें।  

- डॉ राजेश बतरा ।
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Monday, September 12, 2022

मूत्र रोगों में लाभकारी - चंदनासव

Awareness Post 105/22
*मूत्र रोगों में लाभकारी - चंदनासव*
 
आर्युवेदिक औषधि चन्दनासव मूत्र संबंधी कई बीमारियों से सुरक्षित रखने में बेहतर विकल्प  है।
*चन्दनासव का परिचय एवं लाभ -* आसव विधि से तैयार यह आयुर्वेदिक औषधि सिरप के रूप में बाजार में उपलब्ध है। यह पुरुषों में वीर्य स्त्राव, पेशाब में जलन, संक्रमण और महिलाओं में लिकोरिया जैसी दिक्कत को दूर करने में गुणकारी मानी जाती है। पुरुष वर्ग इसे मूत्र संबंधी परेशानियों में ग्रहण कर सकते हैं। वहीं वीर्य स्त्राव से संबंधित विकार को दूर करने में भी यह औषधि लाभदायक मानी जाती है। इसके सेवन से गुर्दा, मूत्राशय व मूत्रमार्ग में संक्रमण से राहत पहुंचती है। वहीं महिलाएं लिकोरिया रोग से बचने के लिए चन्दनासव का लाभ उठा सकती हैं। वहीं श्वेत प्रदर की समस्या अधिकतर महिलाओं में आम बात है, जिससे यह औषधि छुटकारा दिलाने में सहायक है। यह शरीर में गर्मी और जलन से छुटकारा दिलाते हुए अपने शीतल गुण से राहतदेय है। यह हाथ, पैर व शरीर में कहीं भी जलन महसूस होती है, वहां फायदेमंद है। इसके अलावा किडनी के फिल्टर सिस्‍टम को खराबी से दूर रखते हुए पथरी जैसी दिक्कत से भी रक्षा करती है। रक्त पित्त (नकसीर) से संबंधित दिक्कत से बचाव में भी चन्दनासव उपयोगी मानी जाती है। चंदनासव  सिरप में मौजूद धातकी पुष्प, धात्रा, शक्कर, रसना, कचुर, गुड़, पटोल्पत्र, कंचनारत्व, मोचरस, सफेद चंदन, रक्त चंदन, नीलकमल पुष्प,  पिर्यंगपुष्प, परपत,  नागरमोथा, गंभारी, लोधरतव, मुलाथी, सुगंधबाला, चिरौता इत्‍यादि मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं।
सावधानी - यहां यह समझ लें कि कोई भी औषधि के सेवन से पूर्व अपने शरीर के अनुरूप चिकित्सक की सलाह आवश्यक होती है। मधुमेह के रोगी इसके सेवन से पूर्व चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
- डॉ राजेश बतरा ।
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Monday, July 18, 2022

बच्चों को कैसे रखें स्वस्थ

*बच्चों को कैसे रखें स्वस्थ*

बच्चे बहुत चंचल होते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि कौन सा खाना स्‍वाथ्‍यवर्धक है। उन्हें कब जागना है और कब सोना है। वह जीवन चर्या को कैसे अच्छा बना सकते हैं। ऐसे में उनकी सेहत की पूरी जिम्मेदारी मां के कंधों पर चली जाती है। आज बच्‍चों की सेहत को लेकर काफी अभिभावक चिंतित रहते हैं। उसके खानपान, पहनावा, रहन-सहन, दिनचर्या व पढ़ाई आदि को लेकर ढेरों चिंताएं रहतीं हैं। आइये जानते हैं कि थोड़े से प्रबंधन से बच्चों को कैसे हष्ट-पुष्ट और ऊर्जावान बनाए रख सकते हैं।

· प्रभात बेला में जगना हर किसी के लिए स्वास्थ्यवर्धक होता है। ऐसे में बच्चों में अभी से सुबह जल्दी जागने का व्यवहार विकसित करें।

· उन्हें सुबह की नित्य क्रिया के बाद अध्ययन के लिए प्रेरित करें और सुबह स्नान के पश्चात पूजा व ध्यान जरूर कराएं। इससे तन और मन दोनों स्वस्थ रहेंगे।

· कोशिश करें कि उनका पहनावा ढीला-ढाला ही हो। टाइट कपड़ों से परहेज ही बेहतर विकल्प है। सूती व खादी के वस्त्र शरीर के लिए गुणकारी साबित होते हैं।

· उनके खानपान में जरूरी पोषक तत्वों जैसे फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन व मिनरल आदि प्रचुर मात्रा में हों, इसका पूरा ख्‍याल रखें।

· अंकुरित अनाज, मौसम के आधार पर फल और हरी सब्जियां, दूध-दही, दाल, जूस व भरपूर पानी पीने की आदत बच्चों में डालें।  

· पूरा प्रयास करें कि बच्‍चों के सामने खुद भी मोबाइल आदि गैजेट्स कम प्रयोग करें और उन्हें इससे पूरी तरह दूर ही रखें। बच्‍चों के साथ अपना पूरा वक्त बिताएं।

· आज बाजार में शिक्षा से संबंधित ढेरों मैप स्‍ट्रक्‍चर, आकर्षक किताबें व कॉमिक्‍स मौजूद हैं जो बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं। बच्चों में पढ़ने की क्षमता विकसित करें।

· बच्‍चों के सामने हमेशा हंसते-मुस्कुराते रहें। उनको अपनी खूबसूरत यादों से परिचित कराएं। उन्हें रिश्तों की अहमियत और उनके साथ बिताए पलों व खूबसूरत एहसास को बताएं।

· बच्‍चों को प्रेरक कहानियां सुनाएं। उन्हें आशावादी बनाएं और निराशा के वक्त कैसे खुद को मजबूत किया जा सकता है जरूर बताएं। गलतियों से सीख और अच्छाइयों से सेवा का हुनर पैदा करें।

· परोपकार, दान और सेवा के लिए हमेशा बच्चों को प्रेरित करते रहें। नैतिक शिक्षा का ज्ञान देते हुए उनमें एक बेहतर नागरिक बनने की क्षमता अभी से विकसित करें।

· सबसे अहम बात यह है कि पूरी कोशिश करें कि बच्चे देर रात तक जागते न रहें। पैर-हाथ धुल कर जल्‍द बिस्तर में चले जाएं। उनके लिए आठ घंटे की गहरी नींद बहुत जरूरी है।
डॉ राजेश बतरा, दिल्ली। 

Wednesday, April 20, 2022

मिट्टी चिकित्सा और सर्वांग मिट्टी स्नान

Awareness Post 103/2022 #drrajeshbatra 
*मिट्टी चिकित्सा एवं मड़ बाथ*
साधारण भाषा में मिट्टी से शरीर पर लेप को मड थेरेपी कहा जाता है. नेचुरोपैथी यानी प्राकर्तिक चिकित्सा में मिट्टी की पट्टी या मिट्टी के लेप के ज़रिये कई रोगों का इलाज किया जाता है. इस थेरेपी के ज़रिये मिट्टी को शरीर के किसी एक हिस्से या पूरे शरीर में इस्तेमाल किया जाता है. वैसे तो इस थेरेपी के ज़रिये कई रोगों का इलाज किया जाता है 
*मड़ बाथ के सामान्य लाभ*-
1 सर्वांग मिट्टी स्नान पूरे शरीर की शुद्धि कर टॉक्सिंस को शरीर से बाहर निकलता है।
2. झुर्रियां, मुंहासे, त्वचा का रूखापन, दाग-धब्बे, सफ़ेद दाग, कुष्ठ रोग, सोरायसिस और एक्जिमा जैसे रोग दूर करता है।
3. इसके साथ ही मड थेरेपी लेने से स्किन में ग्लो बढ़ता है, स्किन में कसाव आता है और स्किन सॉफ्ट भी होती है।
3. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। गर्मी से राहत देता है।
4. मड बाथ लेने से पाचन शक्ति में सुधार आता है. आंतों की गर्मी दूर होती है. डायरिया और उल्टी जैसी दिक्कत दूर होती है. साथ ही ये कब्ज़, फैटी लीवर, कोलाइटिस, अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज, माइग्रेन और डिप्रेशन जैसी दिक्कतों को दूर करने में भी मदद करती है।
5. शरीर के सभी टॉक्सिंस ( विजातीय द्रव्यों) को जड़ से बाहर कर वजन घटाने और मोटापा कम करने में सहायक।
अनेक प्रकार के रोगों से रक्षा कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है।
- डॉ राजेश बतरा ।
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Saturday, March 12, 2022

कमर दर्द और आयुर्वेदिक थेरेपी

कमर दर्द एवं आयुर्वेदिक थेरेपी
पीठ दर्द एक आम रोग है। शारीरिक पोस्चर का गलत होना, पोषक तत्वों की कमी, वायु रोग, जीर्ण कब्ज, असंयमित दिनचर्या आदि कारणों से कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियां और नस नाड़ियां कमजोर हो जाती हैं । 

आयुर्वेद में पीठ दर्द की समस्या को दूर करने के लिए कई तरह के उपचार दिए जाते हैं. इन उपचारों में कटी बस्ती आयुर्वेदिक थेरेपीज सबसे प्रभावी उपचारों में से एक है. यह थेरेपी विशेष रूप से पीठ दर्द की परेशानी को दूर करने के लिए दी जाती है. कटी बस्ती पंचकर्म चिकित्सा का एक हिस्सा है, जो शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ फिर से स्वस्थ  व मजबूत बनाता है।
*कटि बस्ती एक परिचय* 
कटी बस्ती को अक्सर पुराने पीठ दर्द, गठिया, जोड़ों की जकड़न और यहां तक कि मांसपेशियों में दर्द जैसी स्थिति में इस्तेमाल की जाने वाली सबसे सुरक्षित और प्रभावकारी आयुर्वेदिक थेरेपी माना जाता है. नियमित समय तक पूर्ण रूप से कटी बस्ती थेरेपी लेने से आपको पीठ दर्द की समस्या का स्थायी समाधान हो जाता है।
यह एक बेहतरीन आयुर्वेदिक थेरेपी है. वस्ति एक रिंग के आकार के रूप को कहा जाता है, जिसे अनाज से बनाया होता है. इस प्रक्रिया में वस्ति को प्रभावित क्षेत्र पर रखा जाता है और फिर उसमें गर्म औषधीय तेल डाला जाता है।
त्वचा धीरे-धीरे तेल को सोख लेती है और 30 से 40 मिनट के बाद रिंग को हटा दिया जाता है और बचे हुए तेल से प्रभावित हिस्से की मालिश की जाती है. इस आयुर्वेदिक थेरेपी से न सिर्फ आपको दर्द से राहत मिलती है, बल्कि सख्त मांसपेशियां में भी रक्त का संचार बेहतर तरीके से होता है. वस्ति विभिन्न प्रकार की होती है।
*कटी बस्ती के लाभ*
 1. थेरेपी द्वारा वात दोष को दूर किया जाता है।
 2. इससे पीठ में सूजन, जकड़न और दर्द का इलाज करने में मदद मिलती है।
3.कटि वस्ति थेरेपी के दौरान उपयोग किए जाने वाले हर्बल तेल मांसपेशियों को गहराई से पोषण और मजबूती देने में मदद करते हैं।
4. इस थेरेपी से जोड़ों का लचीलापन और दर्द दूर हो सकता है. ऐसे में अगर आपको जोड़ों में किसी तरह की समस्या है, तो आप इस थेरेपी को ले सकते हैं।
5.यह थेरेपी लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, इंटरवर्टेब्रल डिस्क प्रोलैप्स, लूम्बेगो या लोबर पीठ दर्द जैसी समस्याओं को दूर करने में प्रभावी हो सकती है।
6. कटि बस्ती आयुर्वेदिक थेरेपी वात दोष को शांत करने में मदद करती है, जिससे इंटरवर्टेब्रल जोड़ों की समस्याओं से दूर करने में सहायक है। इससे मांसपेशियों को आराम मिलता है।
7.यह थेरेपी लेने से रक्त संचार में भी सुधार हो सकता है।
 8. कटि वस्ति रीढ़ को मजबूत करने और पीठ दर्द को रोकने के लिए भी एक निरापद व प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार है।
9. कटी बस्ती एक बेहद प्रभावकारी थेरेपी है, जो आपकी रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने में असरदार हो सकती है. साथ ही यह पीठ दर्द से राहत दिलाने में भी मदद करती है. 
10.  इस थेरेपी की मदद से पीठ की मांसपेशियों को आराम मिलता है।
  आयुर्वेद एक्सपर्ट की सलाह पर ही इस थेरेपी को लें।

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Thursday, March 10, 2022

अनुलोम विलोम प्राणायाम और उसके लाभ

अनुलोम विलोम प्राणायाम
हर मौसम में सभी उम्र के साधक स्वस्थ हों अथवा रोगी हर कोई इसका अभ्यास कर सकता है।
विधि -  सुखासन  सिद्धासन अथवा पदमासन में बैठें। बाएं हाथ की ज्ञान मुद्रा तथा दायाँ हाथ प्राणायाम मुद्रा में रखकर बायीं नासिका से श्वास लेकर दायीं नासिका से बाहर छोड़ें । इसी प्रकार अब दायीं नासिका से श्वास लेकर बायीं ओर छोड़ें ।ये क्रम लगातार चलता रहे। श्वास लेकर हर बार थोडा रुककर कुम्भक करें तो और अच्छा है।
सभी शारीरिक मानसिक साध्य एवम् असाध्य रोगों को जड़ से मिटाता है। इस अभ्यास से शरीर मन बुद्धि व् आत्मा निर्मल हो जाते हैं। 10 से 20 मिनट अभ्यास रोज करना चाहिए । जितना करें उतना अच्छा।

चिकनगुनिया और डेंगू का प्राकृतिक उपचार

 चिकुनगुनिया व डेंगू का प्राकृतिक उपचार
निम्न प्राकृतिक उपचार करें -
1. गिलोय, पपीते के पत्ते व व्हीट ग्रास का जूस लें। तीनोँ मिक्स रेडीमेड भी मिल जाता है।
2. दो से 4 तुलसी व नीम के पत्ते लें या नीम गिलोय तुलसी और व्हीट ग्रास मिक्स टैबलेट ग्रासोविट के नाम से रेडीमेड मिल जाती है दो दो टैबलेट सुबह शाम लें।
3. पानी नारियल पानी और मौसम्बी का रस बार बार लें।
4. हल्दी और नमक पानी में डालकर गुनगुने पानी से गरारे करें।
5. नाक बंद व खांसी या गले की खराश या संक्रमण  को दूर करने के लिए षड बिंदु तेल की तीन तीन बूंदें दोनो नसिकाओं में डालें।
6.खांसी जुकाम, कफ बलगम व कमजोरी दूर करने के लिए सितोपलादी चूर्ण शहद में मिलाकर दिन में दो बार लें।
 7.कीवी, अनार, सेव, हरा सिंगाडा आदि फल लें।
8. एनरज़ल पाउडर पानी में घोल के बार बार लें।
9. पांच दाने मुनक्का के भूनकर नमक लगा कर लें 
10. जोड़ों में दर्द के लिए अश्वगन्धा का तेल लगाएं या तिल तैल में अजवाईन और लहसुन गर्म करके तैल तैयार करके लगाएं।
11.  संभव हो तो जलनेति व कुंजल क्रिया करें, नीम के पानी का एनीमा  बहुत लाभदायक।
12. अनुलोम विलोम प्राणायाम 20 मिनट सुबह शाम करें।
13. बादाम और किशमिश 8- 8 पीस व अंजीर दो पीस भिगो कर रखे 10 से 12 घंटे बाद लें। अंकुरित आहार भी शामिल करें।
14. घर को कीटाणु मुक्त रखने के लिए कपूर या गुग्गल युक्त हवन सामग्री घर में जलाएं या नीम पाउडर जला कर घर में धुआं दें।
15. विश्राम यानि आराम पूरा करें और तनाव ना ले।
16.डेंगू चिकुनगुनिया के दर्द से परेशान रोगी  पंचकर्म व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से उपचार लेवें।
    डॉ राजेश बतरा
वैलनेस केयर, योग -प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र एवं योग संस्कृति उत्थान पीठ अशोक विहार, दिल्ली द्वारा जनहित में जारी।
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Wednesday, March 9, 2022

अणु तेल और षड बिंदु तेल के औषधीय लाभ


*अणु तेल / षड बिंदु तेल*
यह एक बहुत ही सरल और निरापद आयुर्वेदिक तेल  है जिसका इस्तेमाल नासिका रोगों के लिए किया जाता है। कोरोना काल में इसका प्रयोग बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुआ है विशेषकर कोविड रोगियों के लिए भी।

  यह एक बहुत ही गुणकारी आयुर्वेदिक शास्त्रीय तेल है जिसमें समृद्ध व शक्तिशाली जड़ी बूटियां तेलों जैसे चंदन, बला, तेजपत्र, दारूहल्दी, यिष्टिमधु, विडंग, नागकेसर,जीवंती और त्वक आदि से बना है।
प्रयोग - दोनों नासिकाओं में अणु तेल की दो दो बूंदें सुबह शाम या एक समय पर डालें। 
लाभ -
1. दोनों नासिकाओं में अणु तेल डालकर नस्य करने से नाक कान गले के संक्रमण व अनेक रोग दूर हो जाते हैं। 
2. साइनोसाइटिस, नाक का बंद होना,  माइग्रेन, टॉन्सिल्स आदि रोगों को दूर करने में लाभकारी है। 
3. श्वास नलियों के संक्रमण को दूर कर मजबूती 
 करता है।
4. तनाव दूर कर मन को विश्राम पहुंचाता है।
5. बालों का असमय सफेद होना दूर करता है व शरीर से सभी टॉक्सिंस को बाहर निकाल शरीर का शोधन करता है।
*अन्य लाभ -*
1.खांसी, जुकाम, कफ बलगम को दूर कर स्वास नालियों व फेफड़ों को मजबूती प्रदान करता है।
2. साइनस व प्रदूषण जनित एलर्जी को दूर करता है।
सावधानी - वैसे तो इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है फिर भी 12 वर्ष से छोटे बच्चों के लिए प्रयोग न करें। 
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Monday, March 7, 2022

सितोपलादि चूर्ण के गुण ब लाभ


*सितोपलादि चूर्ण*
यह एक बहुत ही सरल और निरापद आयुर्वेदिक औषधि है। इसमें मिश्री, वंशलोचन, छोटी पीपल, छोटी इलायची और दालचीनी का मिश्रण होता है। 
*सितोपलादि चूर्ण के लाभ -*
1.खांसी, जुकाम, कफ बलगम को दूर कर स्वास नालियों व फेफड़ों को मजबूती प्रदान करता है।
2. साइनस व प्रदूषण जनित एलर्जी को दूर करता है।
3. ज्वर, कमजोरी व पाचन तंत्र के रोगों को दूर कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बदाता है।
बच्चों और बूढ़ों को भी दिया जा सकता है। 
सेवन - रोग, रोगी व आयु के अनुसार ले सकते हैं। आधे से एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार।
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Sunday, March 6, 2022

मशरूम के औषधीय गुण

*मशरूम के औषधीय गुण*

मशरूम एक साधारण शाक है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है।
मशरूम में मौजूद एंटी ऑक्‍सीडेंट हमें भंयकर फ्री रेडिकल्‍स से बचाता है। इसको खाने से शरीर में एंटीवाइरल और अन्‍य प्रोटीन की मात्रा बढती है, जो कि कोशिकाओं को रिपेयर करता है। यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है जो कि माइक्रोबियल और अन्‍य फंगल संक्रमण को ठीक करता है।
*अन्य लाभ*

1.मशरुम का सेवन करने से जीर्ण रोगों से निजात पाई जा सकती है।
2. मशरुम हमारे शरीर को कई रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुआ हैं जैसे: हृदय, लिवर संबंधित बीमारियों से बचाने में मदद करता हैं ।
3. ब्लड प्रैशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।
4. मधुमेह में भी लाभकारी है।
मशरूम वह सब कुछ देगा जो मधुमेह रोगी को चाहिये। इसमें विटामिन, मिनरल और फाइबर होता है। साथ ही इमसें फैट, कार्बोहाइड्रेट और शुगर भी नहीं होती, जो कि मधुमेह रोगी के लिये जानलेवा है। यह शरीर में इनसुलिन को बनाती है।
5. मोटापा कम करता है ।
इसमें लीन प्रोटीन होता है जो कि वजन घटाने में बडा़ कारगर होता है। मोटापा कम करने वालों को प्रोटीन डाइट पर रहने को बोला जाता है, जिसमें मशरूम खाना अच्‍छा माना जाता है।
6. मैटाबॉलिज्‍म को मजबूत करता है। मशरूम में विटामिन ‘बी’ होता है जो कि भोजन को ग्‍लूकोज़ में बदल कर ऊर्जा पैदा करता है। विटामिन बी-2 और बी-3 भी मैटाबॉलिज्‍म को दुरुस्त रखते हैं। इसलिए मशरूम खाने से मैटाबॉलिज्‍म बेहतर बना रहता है।
इस प्रकार मशरूम शरीर के विभिन्न रोगों में लाभकारी होने के साथ साथ रोग प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाता है। 

*अतः मशरूम खाएं, स्वस्थ रहें।*
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त्रिफला के औषधीय गुण

Awareness Post 101/2022 #drrajeshbatra 
*त्रिफला के औषधीय गुण*
परिचय -
त्रिफला एक आयुर्वेद का वरदान है। इसके गुणों की दृष्टि से हम इसे  महा औषधि कह सकते हैं।
आयुर्वेद में त्रिफला को शरीर में त्रिदोष (वात,पित्त और कफ) को संतुलित करने के लिए जाना जाता है। त्रिफला पांच प्रकार के रस या स्‍वाद से युक्‍त है। इसका स्‍वाद मीठा, खट्टा, कसैला, कड़वा और तीखा होता है। 
*घटक द्रव्य और उनके लाभ*- 
त्रिफला या त्रिफला चूर्ण एक सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक मिश्रण है जिसे आमलकी (आंवला), विभीतकी और हरीतकी (हरड़) से तैयार किया गया है। यहां तक कि त्रिफला नाम का अर्थ ही ‘तीन फल’ है। आयुर्वेद में त्रिफला चूर्ण को मुख्‍य रूप से ‘रसायन’ गुणों के लिए जाना जाता है क्‍योंकि ये मिश्रण शरीर को शक्‍ति प्रदान करने और स्‍वस्‍थ बनाए रखने में बहुत असरकारी है। ये अनेकों बीमारियों से भी रक्षा करता है।

*त्रिफला चूर्ण निम्‍न जड़ी बूटियों का मिश्रण है:*
1. आंवला
आंवला या आमलकी पूरे देश में उपलब्‍ध सबसे सामान्‍य फलों में से एक है। आंवला में फाइबर, एंटीऑक्‍सीडेंट, खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में होते हैं । इसे विटामिन सी का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। आंवले के सेवन से पेट दुरुस्‍त रहता है और कब्‍ज से बचाव होता है। आंवला संक्रमण से भी लड़ने में मदद करता है एवं यह एक एंटी-एजिंग (बढ़ती उम्र के निशान घटाने वाला) फल के रूप में भी प्रसिद्ध है।
2. विभीतकी ( बहेड़ा)
 आयुर्वेद में इसे दर्द निवारक, एंटीऑक्‍सीडेंट और लिवर को सुरक्षा प्रदान करने के लिए  उपयोगी माना गया है। श्वास संबंधित समस्‍याओं के इलाज में विभीतकी लाभकारी है एवं इसमें डायबिटीज को रोकने के गुण भी मौजूद हैं। आयुर्वेद के अनुसार विभीतकी फल में कई जैविक यौगिक मौजूद हैं जैसे कि ग्‍लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि। इन यौगिकों के कारण ही विभीतकी स्‍वास्‍थ्‍य के लिए इतनी फायदेमंद होती है।
3. हरीतकी ( हरड़)
आयुर्वेद में हरीतकी बहुत ही महत्‍वपूर्ण जड़ी बूटी है। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट, सूजन-रोधी और बढ़ती उम्र को रोकने के गुण मौजूद होते हैं साथ ही ये घाव को ठीक करने में भी उपयोगी है। ये लिवर को सामान्‍य रूप से कार्य करने में मदद करती है। आयुर्वेद में इसे पेट, ह्रदय और मूत्राशय के लिए भी फायदेमंद माना गया है। यहां तक कि इसे ‘औषधियों का राजा’ भी कहा जाता है।
*सामान्य लाभ*-
1. जीर्ण से जीर्ण कब्ज़ दूर करने में सहायक।
2. उदर विकारों एवं पेट में गैस की समस्या (एसिडिटी) लाभकारी।
3. नेत्र ज्योति बढ़ाने में सहायक।
4. शरीर के सभी टॉक्सिंस ( विजातीय द्रव्यों) को जड़ से बाहर कर वजन घटाने और मोटापा कम करने में सहायक।
5. भूख व पाचन शक्ति बढ़ाता है
6.बालों का झड़ना रोकता है।
अनेक प्रकार के रोगों से रक्षा कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है।
- डॉ राजेश बतरा ।
*विशेष जानकारी हेतु संपर्क -*
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