Wednesday, October 29, 2025

हर घर में होने चाहिए ये 7 पौधे – देंगे स्वास्थ्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा

 हर घर में होने चाहिए ये 7 पौधे – देंगे स्वास्थ्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा

आज के समय में जब जीवन भागदौड़, तनाव और प्रदूषण से घिरा हुआ है, ऐसे में प्रकृति से जुड़ना ही असली शांति देता है। घर में पौधे न केवल वातावरण को शुद्ध करते हैं, बल्कि ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का स्रोत भी बनते हैं। भारतीय परंपरा में पौधों को केवल सजावट का साधन नहीं, बल्कि देवी-देवताओं का स्वरूप माना गया है। आयुर्वेद और वास्तु शास्त्र दोनों ही बताते हैं कि कुछ पौधे स्वास्थ्य, धन, और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं।



आइए जानें ऐसे ही 7 पवित्र और उपयोगी पौधों के बारे में जो हर घर में होने चाहिए :

 1. तुलसी का पौधा – घर की देवी

तुलसी केवल एक औषधीय पौधा नहीं, बल्कि शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है। इसे “देवी तुलसी” कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है:

> “तुलसी दलमात्रेण जलस्य च तुलायवा।

तुलसीं सर्वदेवानां प्रियं हि मधुसूदनः॥”     

लाभ:

हवा से विषैले तत्वों को हटाती है।

रोज तुलसी पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

तुलसी चाय या पत्तियाँ प्रतिरक्षा शक्ति (इम्यूनिटी) बढ़ाती हैं।

वास्तु टिप: तुलसी को हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।

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 2. मनी प्लांट – धन और समृद्धि का प्रतीक : 

मनी प्लांट को लक्ष्मी का पौधा माना गया है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार यह पौधा घर में आर्थिक स्थिरता और तरक्की लाता है।

लाभ:

ऑक्सीजन बढ़ाता है और हवा को शुद्ध रखता है।

हरियाली से मन शांत होता है।

वास्तु टिप: मनी प्लांट को दक्षिण-पूर्व दिशा (South-East) में लगाना शुभ माना गया है।

ध्यान रखें: इसे सूखने न दें, वरना आर्थिक रुकावटें आ सकती हैं।

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 3. 

🌸 3. जेड प्लांट (Crassula Ovata) – “लकी प्लांट”

यह छोटा, आकर्षक पौधा धन, सौभाग्य और शांति का प्रतीक है। Feng Shui में इसे Money Attractor कहा गया है।

घर की सजावट के लिए सुंदर और टिकाऊ विकल्प है।

कम धूप में भी पनपता है।



 4. गमले में लगाया बांस (Bamboo Plant) – सौभाग्य और दीर्घायु का प्रतीक

फेंग शुई के अनुसार, बांस पौधा सौभाग्य, दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक है।

लाभ:

यह पौधा नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।

ऑफिस या घर की मेज़ पर रखने से एकाग्रता और धन में वृद्धि होती है।

वास्तु टिप: इसे पूर्व दिशा में रखें ताकि जीवन में वृद्धि और स्थिरता बनी रहे।

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 5. एलोवेरा (घृतकुमारी) – प्राकृतिक औषधालय

एलोवेरा को आयुर्वेद में “घृतकुमारी” कहा गया है और इसे त्वचा, बाल और पाचन के लिए चमत्कारिक पौधा माना गया है।

लाभ:

इसके रस से त्वचा को निखार और घावों में राहत मिलती है।

यह हवा से प्रदूषक तत्वों को हटाता है।

नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करता है।

टिप: इसे घर के बालकनी या खिड़की के पास रखें, जहाँ धूप आती हो।

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 6. शमी का पौधा – ग्रह दोष और आर्थिक संकट से मुक्ति

शमी वृक्ष को भगवान शिव और शनिदेव का प्रिय माना गया है।

शास्त्रों में उल्लेख:

“शमी शनि प्रियं वृक्षं, शत्रु नाशकं शुभं।”

लाभ:

यह नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है।

शनिदोष और राहु-केतु दोष कम करता है।

वास्तु टिप: इसे घर के दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखें।

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 7. गिलोय (अमृता) – रोग प्रतिरोधक शक्ति का पौधा

गिलोय को आयुर्वेद में अमृता यानी अमरता देने वाली बेल कहा गया है।

लाभ:

यह शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाता है।

बुखार, डिटॉक्स और मधुमेह में लाभदायक है।

मानसिक थकान और तनाव को कम करता है।

टिप: इसे दीवार या पेड़ के सहारे चढ़ने दें, सुबह-सुबह इसका एक छोटा टुकड़ा चबाना लाभदायक है।

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 पौधों की देखभाल = सकारात्मकता की साधना

हर पौधा एक जीव है। जब आप पौधों को पानी देते हैं, उनसे बात करते हैं, तो आप अपनी ऊर्जा और प्रेम उन्हें देते हैं।

यह प्रक्रिया आपको भीतर से शांत, दयालु और संतुलित बनाती है।

योग और नेचुरोपैथी में भी कहा गया है — “Nature heals faster when you connect with it.”

यानी जब आप प्रकृति के संपर्क में रहते हैं, तो मन, शरीर और आत्मा तीनों संतुलित होते हैं।



 वास्तु और आयुर्वेद के अनुसार पौधों का महत्व

घर के उत्तर-पूर्व कोने (ईशान कोण) में तुलसी, मनी प्लांट, एलोवेरा जैसे पौधे रखना शुभ है।

कांटेदार या सूखे पौधे न रखें — ये नकारात्मक ऊर्जा लाते हैं।

हर शनिवार या पूर्णिमा के दिन पौधों को जल चढ़ाना शुभ माना गया है।

पौधों को लगाने का सबसे शुभ समय सुबह सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद होता है।

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निष्कर्ष

घर में पौधे लगाना केवल सौंदर्य का विषय नहीं, बल्कि ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का माध्यम है।

इन 7 पौधों को घर में लगाकर आप न केवल वातावरण को स्वच्छ बना सकते हैं, बल्कि जीवन में शांति, सकारात्मकता और प्रगति भी आमंत्रित कर सकते हैं।

 “प्रकृति से जुड़ना, स्वयं से जुड़ना है।”

जब घर में हरियाली आती है, तो जीवन में खुशहाली अपने आप आ जाती है। 

Monday, October 27, 2025

परम संत बलजीत सिंह जी महाराज : एक पूर्ण सतगुरु

परम संत बलजीत सिंह जी महाराज : एक पूर्ण सतगुरु
  जीवन-परिचय व पृष्ठभूमि 
परम संत बलजीत सिंह जी महाराज वर्तमान में Vishwa Manav Ruhani Kendra (नवाँ नगर, कलका/पंचकूला क्षेत्र) के प्रमुख संत एवं मार्गदर्शक हैं। VMRK का मुख्यालय नवान-नगर (पोस्ट ऑफिस नानकपुर, तहसील कालका, जिला पंचकूला, हरियाणा) स्थित है। 
परम संत बलजीत सिंह जी महाराज ने ग्रामीण भारत में जन्म-श्रुति पाई और बाल्यकाल से ही जीवन के गहरे अर्थ-अन्वेषण की प्रवृत्ति उनमें दिखाई दी। उन्होंने इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि से भी ‘मेरचेंट नेवी’ में कार्य किया, फिर बाद में पूर्ण-समर्पण के साथ सेवा-धारा में चले गए। 
संगठन-कार्य एवं सामाजिक-सेवा 
उनका जीवन सरलता, सेवा और आध्यात्मिक उन्नति के प्रति समर्पित रहा है। सामाजिक और धर्म-पर सेवा-कार्य के माध्यम से उन्होंने मानवता-सेतु का कार्य किया है।
उनके आश्रम एवं केन्द्र में अनेक भक्त एवं साधक आते-जाते रहते हैं, जहां निस्वार्थ सेवा, ध्यान-साधना और सामाजिक कल्याण-कार्य चल रहे हैं। इस संगठन के 259 से अधिक ‘मानव-केंद्र’ पूरे भारत में कार्यरत हैं, जो नि:शुल्क भोजन-शिक्षा- सामाजिक-सेवा, चिकित्सा-राहत, आपदा राहत आदि कार्यों से मानवता की सेवा कर रहे हैं । उदाहरण के लिए, Amarnath Yatra 2025 के दौरान VMRK ने बाल्टाल एवं पहलगाम मार्गों पर चिकित्सा-शिविर स्थापित कर 1,500 से अधिक तीर्थयात्रियों का दैनिक उपचार किया। 
आध्यात्मिक आयाम एवं उपदेश-संपर्क 
संतजी के दर्शनात्मक उपदेश उस त्यौहार में उभर कर आते हैं जहाँ भक्ति-साधना, आत्म-अनुभव, गुरु-शिष्य संबंध, प्रेम-सेवा के मूल भाव प्रमुख रूप से सामने आते हैं। 
एक उद्धरण के अनुसार, “It is important that you develop in-depth and heartfelt devotion within your heart. In the end, this is what will be considered.” — संतजी द्वारा नवरात्रि के अवसर पर। 
उनकी सेवा- केन्द्र और केन्द्र के सामाजिक-धार्मिक कामों से यह स्पष्ट है कि उनका उद्देश्य सिर्फ निजी मोक्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि “मानव सेवा = ईश्वर सेवा” के मूल मंत्र के आधार पर व्यापक सामाजिक आध्यात्मिक परिवर्तन है। वो एक पूर्ण सतगुरु के रूप में जीवों को संसार सागर से पार करने आए हैं।
उनकी प्रेरणा स्रोत रही उस वचन-पंक्ति से- “God is Love”-जो उनके अनुशासन-साधना की चिंगारी बनी। 
उत्सव का आयोजन एवं प्रमुख गतिविधियाँ
VMRK हर वर्ष वसंत (चैत्र) एवं शरद (अश्विन) नवदुर्गा-नवरात्रि में बड़े पैमाने पर आयोजन करता है। 
उदाहरण के लिए, चैत्र नवरात्रि 2025 के लिए 30 मार्च से 6 अप्रैल तक Nawan Nagar  केंद्र में आयोजित हुआ था। 
आयोजन स्थल पर मुख्यतः शाम के कार्यक्रम होते हैं: भजन-कीर्तन, आरती, श्रद्धालुओं का समागम, गीत-संगीत, सामूहिक उपासना। 
कार्यक्रम के हिस्से के रूप में कन्या पूजन की परंपरा भी है — अर्थात् नवरात्रि के अंतिम दिन छोटे-छोटे बालिकाओं का पूजा-सत्कार किया जाता है। 
नवरात्रि कार्यक्रम के दौरान, VMRK केवल पूजा-उत्सव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि “मानव-सेवा” की दिशा में सक्रिय रहता है — जैसे नि:शुल्क भोजन, ठहराव, चिकित्सा शिविर, रक्तदान-कैम्प आदि। उदाहरणस्वरूप, …चैत्र नवरात्रि 2025 के दौरान 30 मार्च-7 अप्रैल के बीच मेडिकल कैंप, रक्तदान, शैक्षिक सामग्री वितरण आदि की गईं। 
इसी तरह, 2023 अक्टूबर अश्विन नवरात्रि में 61 स्कूलों में पहुँच कर 5,000+ छात्रों को शैक्षिक सामग्री प्रदान की गई। इस प्रकार, नवरात्रि सिर्फ उपवास-पूजा का समय नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति, सेवा-प्रवृत्ति और दिव्यता-अनुभव का अवसर माना जाता है। 
प्रमुख आध्यात्मिक शिक्षाएँ
(i) “एकता-विविधता में” जीवन
संतजी का मुख्य संदेश है — “हम सब परम परिवार-रूपी ईश्वर का हिस्सा हैं, इसलिए प्रत्येक रूप में ईश्वर का सम्मान, प्रेम व सेवा करना चाहिए।” 
(ii) सेवा (Seva) को आत्मा-मार्ग बनाना
वे कहते हैं कि सेवा केवल बाह्य कर्म नहीं, बल्कि आत्म-विस्तार का माध्यम है। “जब हम मानव-सेवा करते हैं, तब हम ईश्वर-सेवा करते हैं।” उन्होंने बार-बार यह कहा है कि मानवता की सेवा जीवन का प्रेरक लक्ष्य होनी चाहिए।
‘‘दूसरों की सहायता करना, दुःखी-परित्यक्तों के प्रति संवेदनशील बनना’’ उनके संदेश का अभिन्न अंग रहा है।
(iii) प्राकृतिक जीवन-शैली एवं आत्म-शुद्धि
उनकी शिक्षाओं में एक “प्राकृतिक जीवन-शैली” पर बहुत जोर है — जैसे सादा भोजन, संयमित कार्य, ध्यान-साधना, अहिंसा/करुणा भाव। 
(iv) सच्चे गुरु-अनुयायी सम्बन्ध का महत्व
वे बताते हैं कि जैसे विद्यालय में शिक्षक आवश्यक है, वैसे ही आध्यात्मिक पथ में गुरु का होना अनिवार्य है। गुरु-शिष्य परम्परा को उन्होंने माना है कि यह केवल बाह्य गुरुकुल नहीं — बल्कि भीतर के उन्नयन का मार्ग है।
• सत्संग, सत्कर्म, सतगुरु का स्मरण — ये सब उनकी शिक्षाओं में बार-बार आये हैं। 
(v) एकता-भावना एवं धर्म-सेतु निर्माण
• भिन्न-भिन्न धर्म, संप्रदाय, भाषाओं के बीच मानव-एकता की भावना उन्होंने बढ़ाई है।
• धर्म का अर्थ सिर्फ किसी पंथ का पालन नहीं, बल्कि जीवन में सदाचार, करूणा, प्रेम और समर्पण होना चाहिए — यही उनका मूल संदेश है।
(vi) अहंकार एवं माया-बन्धनों से परे उठना
• लोग अपने अहं-मान, लालच, क्रोध आदि भावों के कारण आगे नहीं बढ़ पाते — इस पर उन्होंने विशेष जोर दिया है।
• वास्तविक आनंद, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर-अनुभव अहं-वश नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि द्वारा संभव है।
(vii) स्व-ध्यान एवं जीने का संतुलित मार्ग
• केवल भक्ति-भाव या केवल कर्म-मार्ग नहीं, बल्कि संतुलित आध्यात्मिक जीवन का प्रयोजन है।
• साधना-ध्यान (मन को नियंत्रित करना) तथा दिन-चर्या तथा जिम्मेदारियों में स्थिरता दोनों को साथ ले चलने पर बल दिया जाता है।
 (v) आत्म-साक्षात्कार एवं चेतना-विकास
उनका उपदेश इस ओर उन्मुख है कि हमें “मैं आत्मा हूँ, अनन्त-चेतना हूँ, आनंद-स्वरूप हूँ” इस अनुभव तक पहुँचना है। 
इस दिशा में ध्यान-धारण, मौन-प्रवृत्ति, सुख-दुःख की परिपक्व दृष्टि आदि की भूमिका है।
कुछ चुने हुए वचन (संक्षिप्त)
“जब हम मानवता की सेवा करते हैं, हम ईश्वर-श्री को स्पर्श करते हैं।”
“प्रकृति-साधना से भीतर का शोर शांत हो जाता है, वहाँ से सच-चेतना जन्म लेती है।”
“गुरु-अनुयायी का सम्बन्ध केवल शिष्य-गुरु नहीं, बल्कि जीवन-शिक्षा-अनुभव का रूप लेता है।”
“एकका स्वरूप देखो — भिन्नता में बंधे मत रहो। सभी जीवों में एक चेतना बसती है।”

Sunday, October 26, 2025

छठ पूजा : सूर्य उपासना का दिव्य पर्व

छठ पूजा : सूर्य उपासना का दिव्य पर्व
भारत की पावन भूमि पर अनेक पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें प्रत्येक का अपना धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व है। इन्हीं में से एक अत्यंत पवित्र और वैदिक पर्व है — छठ पूजा। यह पर्व न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति, सूर्य, जल और मानव के गहरे संबंध को भी उजागर करता है।
 छठ पूजा का परिचय
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक प्रमुख और प्राचीन पर्व है, जो सूर्य देव और उनकी बहन छठी माई (उषा देवी) की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है, किंतु आज यह देश और विश्वभर में फैले भारतीय समाज में भी समान श्रद्धा से मनाया जा रहा है।
छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जो सामान्यतः दीपावली के छठे दिन आती है। इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें सूर्य की उपासना संध्याकालीन और प्रातःकालीन दोनों रूपों में की जाती है, जो मानव जीवन में ऊर्जा, प्रकाश और स्वास्थ्य का प्रतीक हैं।
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 छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति
छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है। सूर्य उपासना का उल्लेख ऋग्वेद और पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि छठ पूजा सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण द्वारा की गई थी, जो अपनी अटूट भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। कर्ण प्रतिदिन उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते थे और सूर्य देव से शक्ति व कीर्ति प्राप्त करते थे।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में माता सीता ने भी भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ व्रत किया था। इसी कारण यह पर्व रामायण कालीन भी माना जाता है।
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शास्त्रीय संदर्भ
सूर्य उपासना के महत्व का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।
ऋग्वेद में कहा गया है—
 “ॐ मित्राय नमः।
यो देवो विश्वभुवनानि पश्यति।
स नः सूर्यः प्रचोदयात्॥”
अर्थात् — हे सूर्य देव! आप समस्त जगत को प्रकाशित करते हैं, हमारे जीवन को भी प्रकाश और ऊर्जा से भर दें।
यजुर्वेद में उल्लेख है कि सूर्य ही जगत के जीवनदायी हैं। उनका प्रकाश ही सृष्टि को गति देता है। “आदित्याद् जायते सर्वं, तस्मात् सर्वप्रभाकरः।”
अर्थात् — सब कुछ सूर्य से उत्पन्न होता है, वही समस्त जगत को प्रकाशित करता है।
 छठी माई का स्वरूप
छठी माई को सूर्य देव की बहन कहा जाता है। उन्हें उषा देवी या षष्ठी देवी के रूप में भी जाना जाता है। शास्त्रों में उनका वर्णन इस प्रकार किया गया है —
वे मातृत्व, संतान-सुरक्षा, दीर्घायु और स्वास्थ्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि छठी माई की आराधना करने से संतान-सुख, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
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 छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
1. सूर्य देव की आराधना – यह एकमात्र पर्व है जिसमें सूर्य की प्रत्यक्ष पूजा की जाती है।
2. प्रकृति का सम्मान – सूर्य, जल और पृथ्वी की समरसता इस पूजा की मूल भावना है।
3. शरीर और आत्मा की शुद्धि – व्रती उपवास और स्नान द्वारा शरीर और मन को पवित्र करता है।
4. संयम और साधना का पर्व – यह व्रत कठिन तपस्या के समान है जिसमें इच्छाओं पर नियंत्रण और आत्मानुशासन की आवश्यकता होती है।
5. सामूहिक एकता का प्रतीक – घाटों पर एक साथ अर्घ्य देना सामाजिक एकता का अद्भुत उदाहरण है।
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 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छठ पूजा
छठ पूजा का प्रत्येक चरण वैज्ञानिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर पर सूर्य की किरणों का सीधा प्रभाव पड़ता है, जिससे विटामिन D और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
उपवास के दौरान शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है।
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय की किरणें मानव मस्तिष्क के न्यूरॉन सिस्टम को संतुलित करती हैं।
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 छठ पूजा के चार पवित्र दिन
छठ पूजा चार दिनों तक मनाई जाती है। हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है।
1. नहाय–खाय (पहला दिन)
इस दिन व्रती शुद्ध जल से स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं। घर की शुद्धता और मन की पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। भोजन में आमतौर पर लौकी-भात और चना दाल बनाई जाती है।
2. खरना (दूसरा दिन)
इस दिन सूर्यास्त के बाद व्रती गुड़-चावल की खीर और रोटी बनाते हैं। इसे भगवान सूर्य को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रती 36 घंटे का निराहार व्रत शुरू करते हैं।
3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
यह छठ पूजा का सबसे मुख्य दिन होता है। व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। ढोल-नगाड़ों, गीतों और भजनों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। महिलाएँ गीत गाती हैं - 
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय...”
4. प्रातः अर्घ्य (चौथा दिन)
अगले दिन उदयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यही इस पर्व का समापन होता है। इसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करते हैं।
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 छठ पूजा की परंपराएँ और सामग्री
छठ पूजा में प्रयुक्त सामग्रियों का भी विशेष महत्व है—
बाँस की सूप और दौरा ठेकुआ, मालपुआ, गुड़-चावल, नारियल
केला, गन्ना, सिंघाड़ा, मूली, नींबू, सेब दीपक और गंगाजल
कुम्हड़े का फूल या नई फसल की वस्तुएँ ।
हर वस्तु प्राकृतिक और शुद्ध होती है, क्योंकि यह पूजा रासायनिक रहित और सात्विक जीवनशैली का प्रतीक है।
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🕉️ श्लोक एवं प्रार्थनाएँ
सूर्य देव की प्रार्थना: “जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥”
(अर्थ: मैं जपाकुसुम के समान लाल प्रभा वाले, अंधकार के शत्रु और सर्व पापों का नाश करने वाले दिवाकर सूर्यदेव को नमस्कार करता हूँ।)
छठी माई की प्रार्थना:
 “षष्ठी देवि नमस्तुभ्यं, सर्वसिद्धिप्रदायिनि।
पुत्रान् देहि शुभान् देहि, धनं धान्यं च देहि मे॥”
(अर्थ: हे छठी माता! आपको नमस्कार, आप सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं। मुझे उत्तम संतान, धन-धान्य और समृद्धि प्रदान करें।)
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 लोकगीत और सांस्कृतिक प्रभाव
छठ पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत भावनाओं, श्रद्धा और लोकसंस्कृति से परिपूर्ण होते हैं।
कुछ प्रमुख गीत हैं—
“केलवा के पात पर उगेले सूरज देव...”
“छठी मइया आयिलि अंगना...”
इन गीतों में भक्ति के साथ-साथ ग्रामीण जीवन की सरलता और मातृत्व की भावना झलकती है।
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 यमुना और गंगा तटों पर छठ पूजा
दिल्ली, पटना, वाराणसी और प्रयागराज जैसे नगरों में यमुना और गंगा तटों पर लाखों श्रद्धालु सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
यमुना नदी का जल, सूर्य देव की किरणों में चमकता हुआ, श्रद्धालुओं के मन में आस्था की लहरें जगा देता है।
यह दृश्य न केवल धार्मिक बल्कि पर्यावरणीय चेतना का भी प्रतीक है—स्वच्छ नदी, स्वच्छ मन।
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 छठ पूजा का वैश्विक प्रसार
आज छठ पूजा केवल बिहार या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रही। अमेरिका, ब्रिटेन, मॉरीशस, नेपाल, दुबई जैसे देशों में बसे भारतीय समाज ने इसे विश्वस्तर पर भारतीय संस्कृति की पहचान बना दिया है।
 छठ पूजा का सार
छठ पूजा केवल एक व्रत या पूजा नहीं, बल्कि यह संयम, श्रद्धा, पर्यावरण-प्रेम और सूर्य-आस्था का संगम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि
मनुष्य का जीवन प्रकृति से जुड़ा है।
सूर्य बिना जीवन संभव नहीं।
आत्मसंयम और भक्ति से ही सच्ची ऊर्जा मिलती है।
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इस प्रकार छठ पूजा मानव और प्रकृति के बीच एक आध्यात्मिक संवाद है। यह पर्व हमें सूर्य की ऊर्जा, जल की पवित्रता और मातृत्व की ममता का संदेश देता है।
छठ मइया के आशीर्वाद से जीवन में प्रकाश, स्वास्थ्य, समृद्धि और संतुलन प्राप्त होता है। 
“सूर्य नमस्कारं प्रातः, जलार्पणं सायं।
छठी माई कृपां देहि, भवसागरं तारयामि॥”
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Wednesday, October 22, 2025

गोवर्धन पूजन : प्रकृति, श्रद्धा और संतुलन का पर्व -डॉ राजेश बतरा

🌿 गोवर्धन पूजन : प्रकृति, श्रद्धा और संतुलन का पर्व
भारत वर्ष की धार्मिक परंपराओं में प्रत्येक पर्व का कोई न कोई गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ निहित है। दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजन या अन्नकूट उत्सव भी ऐसा ही एक पावन पर्व है, जो मानव और प्रकृति, देवता और जीवों के बीच सामंजस्य का सन्देश देता है। यह केवल पूजा नहीं, बल्कि आभार प्रकट करने का उत्सव है — प्रकृति के प्रति, अन्न के प्रति, पशु के प्रति और अंततः उस ब्रह्म स्वरूप श्रीकृष्ण के प्रति, जिन्होंने संसार को अहंकार त्यागने का सन्देश दिया।
🌾 गोवर्धन पूजन का इतिहास
गोवर्धन पूजा की कथा श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण और विष्णु पुराण में विस्तार से वर्णित है। द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण नंदगांव में बालरूप में निवास करते थे, तब वहाँ के लोग प्रतिवर्ष इंद्र देव की पूजा करते थे। उन्हें विश्वास था कि इंद्र की कृपा से वर्षा होती है और अन्न उत्पन्न होता है। परन्तु श्रीकृष्ण ने समझाया कि वास्तव में वर्षा प्रकृति के चक्र का भाग है और गोवर्धन पर्वत, गौमाता तथा पर्यावरण ही हमारे जीवन का आधार हैं।
उन्होंने ब्रजवासियों से कहा — “हमारी खेती, हमारी गायें और हमारे जंगल — ये सब गोवर्धन पर्वत की देन हैं। हमें इंद्र नहीं, गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए।”
जब ब्रजवासी इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन का पूजन करने लगे तो इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज में भयंकर वर्षा प्रारंभ कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उँगली पर गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की। अंततः इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजा का विधान चला।
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🪔 गोवर्धन पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्त्व
1. प्रकृति के प्रति आभार — यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन के हर अंश के पीछे प्रकृति की भूमिका है।
2. अहंकार का विनाश — इंद्र का अहंकार श्रीकृष्ण द्वारा पराजित हुआ। यह सन्देश है कि शक्ति से नहीं, विनम्रता से विजय होती है।
3. सामूहिकता का प्रतीक — इस दिन पूरा समाज मिलकर गोवर्धन बनाता है, अन्नकूट तैयार करता है, जिससे एकता का भाव जाग्रत होता है।
4. गौसेवा और अन्न का सम्मान — गाय, अन्न, जल और पर्वत — ये सब जीवन के आधार हैं; उनका पूजन पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है ।
🏞️ गोवर्धन पूजा की परंपरा और विधि
दीपावली के अगले दिन प्रातःकाल घर के आंगन या मंदिर में गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप बनाया जाता है। इसे मिट्टी, गोबर या गोमय से बनाते हैं। उसके चारों ओर छोटी-छोटी गौ-प्रतिमाएँ, पत्तियाँ, पुष्प और अन्नकूट (विभिन्न पकवानों का ढेर) सजाया जाता है।
पूजन विधि:
गोमय से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसके चारों ओर दीपक जलाए जाते हैं।
जल, अक्षत, पुष्प, दूध, दही, घी, अन्नकूट और तुलसीदल से पूजन किया जाता है।
गोवर्धन की परिक्रमा करते हुए भक्त कहते हैं — “गोवर्धन धारणं वंदे, गोपालं गोविपालकम्।”
पूजा के पश्चात “अन्नकूट प्रसाद” सबमें बांटा जाता है।
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📜 शास्त्रीय सन्दर्भ और श्लोक
गोवर्धन पूजा के महत्व का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण (दशम स्कंध, अध्याय 24–27) में मिलता है। वहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं— “इदं गोवर्धनं नाम पर्वतं हरिदेवतम्।
पूजयित्वा तु देवानां पूजां सम्यक् करिष्यथ।”
(भागवत 10.24.26)
अर्थ — यह गोवर्धन पर्वत हरिदेव के समान पूजनीय है। इसकी पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है।
एक अन्य स्थान पर श्रीकृष्ण का वचन है — “न मे प्रियं चतुर-वेदि ब्राह्मणो भू-रि-दक्षिणः।
यथा गोवर्धनं नाम मम भक्त्योपपादितम्॥”
(भागवत 10.24.45)
— अर्थात मेरे लिए कोई ब्राह्मण, कोई यज्ञ, कोई दान उतना प्रिय नहीं जितना यह गोवर्धन पूजा मेरे भक्तों द्वारा की गई है।
🐄 गौसेवा का आध्यात्मिक पक्ष ; 
गोवर्धन पूजा में गौमाता की विशेष आराधना की जाती है। गौ माता की पूजा हमारी संस्कृति की एक उत्कृष्ट उपलब्धि है। गौ माता में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास कहा गया है। हिन्दू धर्म में गौ को “माता” कहा गया है, क्योंकि वह अन्न, दूध, घी और औषधीय तत्वों की स्रोत है।
शास्त्रों में कहा गया है — “गावो विश्वस्य मातरः।”
— अर्थात् गायें सम्पूर्ण जगत की माताएँ हैं।
गोवर्धन पूजा का भाव यह है कि हम गौ, गोवर्धन और गोपाल (श्रीकृष्ण) — तीनों के प्रति श्रद्धा रखें। यह त्रिवेणी ही समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का आधार है।
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🌍 पर्यावरणीय और सांस्कृतिक मूल्य
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का भी प्रतीक है। आज के युग में जब मनुष्य प्रकृति से दूर हो रहा है, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि —
पर्वत, नदियाँ, पशु, वनस्पति सब जीवन का हिस्सा हैं।
प्रकृति का सम्मान करना ही ईश्वर की सच्ची पूजा है।
गोवर्धन पूजा, पारिस्थितिक संतुलन की परंपरा का जीवंत उदाहरण है।
श्रीकृष्ण का यह संदेश कालजयी है — “यः सर्वत्र मां पश्यति, सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि, स च मे न प्रणश्यति॥”
(गीता 6.30)
— जो व्यक्ति सर्वत्र मुझे देखता है, वह कभी मुझसे अलग नहीं होता।
इस दृष्टि से गोवर्धन पूजा मानवता को अद्वैत भाव की ओर ले जाती है।
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🌿 अन्नकूट महोत्सव
गोवर्धन पूजा के दिन “अन्नकूट” का विशेष आयोजन होता है। “अन्नकूट” का अर्थ है — अन्न का पर्वत। मंदिरों और घरों में सैकड़ों प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
वृंदावन, मथुरा, नाथद्वारा, द्वारका आदि में इस दिन भव्य अन्नकूट दर्शन होते हैं। मंदिरों में प्रसाद वितरण और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। यह सामूहिकता और समानता का प्रतीक है — जहाँ सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ बैठकर अन्न ग्रहण करते हैं।
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🕉️ आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्त्व
गोवर्धन पूजा का सबसे बड़ा संदेश है — “प्रकृति में ईश्वर का दर्शन”। श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर कण में, हर वृक्ष, हर प्राणी और हर पर्वत में विद्यमान हैं।

इस पर्व का आध्यात्मिक मर्म है —
1. अहंकार त्याग — इंद्र का अहंकार प्रकृति द्वारा झुका दिया गया।
2. सद्भावना और सहयोग — जब ब्रजवासी एकजुट हुए तभी संकट टला।
3. भक्ति और संरक्षण का समन्वय — भक्ति तभी पूर्ण है जब उसमें संरक्षण का भाव हो।
4. कर्म और भक्ति का संगम — कृष्ण ने कर्म के साथ भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया।
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📖 श्लोक और प्रार्थना

भक्तजन गोवर्धन पूजा के दिन निम्न श्लोकों से भगवान को स्मरण करते हैं —  “गोवर्धन धराधीशं भक्ताभीष्ट प्रदायकम्।
गोविंदं गोपिकानाथं नमामि श्रद्धयान्वितः॥”
अर्थ — जो भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं, उन गोवर्धनधर श्रीगोविंद को मैं श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता हूँ। “जय गोवर्धन धारक जय गोविंद गोपाल।
भक्तन के संकट हरनें, नाम तिहारो नंदलाल॥”
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🌺 नैतिक एवं जीवन-मूल्य
1. प्रकृति की पूजा = जीवन की रक्षा
2. सहयोग और एकता = समाज की शक्ति
3. विनम्रता और भक्ति = सफलता की कुंजी
4. अन्न, जल और पशु का आदर = सच्ची समृद्धि
गोवर्धन पूजा का हर तत्व जीवन के इन मूल्यों की याद दिलाता है।
इस प्रकार गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के मधुर संबंधों का उत्सव है। श्रीकृष्ण ने इस पर्व के माध्यम से यह सिखाया कि ईश्वर की आराधना केवल विधि-विधान नहीं, बल्कि जीवों, प्रकृति और पर्यावरण की सेवा है।
आज के युग में जब प्रदूषण, पर्यावरण विनाश और स्वार्थ की भावना बढ़ रही है, तब गोवर्धन पूजा का सन्देश पहले से अधिक प्रासंगिक है —
> “जो प्रकृति का सम्मान करता है, वही ईश्वर का सच्चा भक्त है।”
अतः आइए, हम इस गोवर्धन पूजा पर संकल्प लें —
हम प्रकृति, गाय, अन्न और पर्यावरण की रक्षा करेंगे,
कृष्णभाव से जीवन जिएँगे और
गोवर्धन पर्वत की भांति धैर्य, स्थिरता और संरक्षण का प्रतीक बनेंगे।
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॥ जय श्रीकृष्ण ॥
॥ जय गोवर्धन महाराज की जय ॥

Thursday, October 9, 2025

करवा चौथ : सौभाग्य, प्रेम और विश्वास का पवित्र पर्व

 करवा चौथ : सौभाग्य, प्रेम और विश्वास का पवित्र पर्व
         - डॉ राजेश बतरा 
भारत की संस्कृति पर्वों और परंपराओं से भरी हुई है। यहाँ हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई जीवन-दर्शन और भावनात्मक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक है करवा चौथ, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाने वाला व्रत है।
🌸 करवा चौथ का अर्थ
‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का छोटा घड़ा (जल पात्र) और ‘चौथ’ का अर्थ है ‘चतुर्थी’। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चौथ को रखा जाता है। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।
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🌅 करवा चौथ की परंपरा और विधि
इस दिन विवाहित स्त्रियाँ प्रातःकाल ही सरगी ग्रहण करती हैं। यह सरगी प्रायः सास द्वारा बहू को दी जाती है, जिसमें फल, मिठाई, सेवईं और श्रृंगार की वस्तुएँ होती हैं।
सूर्योदय के बाद महिलाएँ न तो जल ग्रहण करती हैं, न अन्न — वे पूरे दिन अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखती हैं।
शाम को महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं, कथा सुनती हैं, करवा की पूजा करती हैं और रात में जब चाँद निकलता है, तो चलनी से चाँद और पति का मुख देखकर अर्घ्य देती हैं।
इसके बाद पति द्वारा जल ग्रहण कराके व्रत खोला जाता है। यह पल पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक बन जाता है।
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करवा चौथ की पौराणिक कथा : वीरवती की कहानी
करवा चौथ से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा रानी वीरवती की है।
वीरवती सात भाइयों की इकलौती बहन थी। अपने पहले करवा चौथ व्रत पर उसने कठोर उपवास रखा। शाम तक वह अत्यधिक भूख-प्यास से व्याकुल हो गई।
उसके भाइयों ने छलपूर्वक दीपक जलाकर दूर से चाँद का आभास कराया ताकि बहन व्रत तोड़ दे।
जैसे ही वीरवती ने जल पिया, उसे संदेश मिला कि उसके पति का निधन हो गया है।
वह विलाप करती हुई माता पार्वती के चरणों में जा गिरी। माता ने उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया और उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया।
तब से यह व्रत “अखंड सौभाग्य” का प्रतीक बन गया।
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 अन्य धार्मिक संदर्भ

महाभारत काल में द्रौपदी ने भी यह व्रत रखा था। जब अर्जुन हिमालय में तपस्या कर रहे थे, तब पांडव कठिनाइयों में फँस गए। श्रीकृष्ण के निर्देश पर द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत किया, जिससे सभी संकट दूर हो गए।

एक अन्य कथा में कहा गया है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे — यह भी स्त्री की शक्ति और अटूट निष्ठा का प्रतीक है।
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करवा चौथ की पूजा विधि :
1. सुबह सरगी ग्रहण करें।
2. सोलह श्रृंगार करें और करवा में जल, फल, मिठाई रखें।
3. दोपहर या शाम को करवा चौथ कथा सुनें।
4. रात्रि में चाँद निकलने पर चलनी से चाँद और पति का मुख देखें।
5. पति से जल ग्रहण कर उपवास खोलें और आशीर्वाद लें।
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करवा चौथ का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व
करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी छिपा है।
🌺 पारिवारिक एकता का प्रतीक – इस दिन परिवार में प्रेम और सम्मान का माहौल बनता है।
🌺 स्त्री की आत्मशक्ति का प्रदर्शन – उपवास आत्मसंयम और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है।
🌺 शारीरिक लाभ – एक दिन का निर्जला व्रत शरीर से विषैले तत्व निकालने में सहायक होता है।
🌺 प्रेम और विश्वास का पर्व – यह पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करता है।
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 आधुनिक युग में करवा चौथ
आज के समय में करवा चौथ की परंपरा और भी सुंदर रूप में विकसित हुई है।
अब कई पति भी अपनी पत्नियों के लिए उपवास रखते हैं — जिससे यह पर्व आपसी समानता और पारस्परिक प्रेम का प्रतीक बन गया है।
सोशल मीडिया और टीवी धारावाहिकों ने इसे रोमांटिक रूप में लोकप्रिय बनाया है, लेकिन इसके पीछे की सच्ची भावना अब भी वही है —
त्याग, श्रद्धा और प्रेम की अनूठी मिसाल।
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🕉️ करवा चौथ के पूजन मंत्र
पूजन के समय प्रचलित एक प्रमुख मंत्र है —
“मम सुखसौभाग्यसिद्ध्यर्थं चंद्रदर्शनं करिष्ये।”
(मैं अपने पति के सुख और सौभाग्य की सिद्धि के लिए चंद्र दर्शन कर रही हूँ।)
एक और शुभ प्रार्थना —
 “धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फल मुझे प्राप्त हों और मेरे पति की आयु लंबी हो।”
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इस प्रकार करवा चौथ केवल व्रत नहीं, बल्कि भारतीय नारी के प्रेम, निष्ठा और शक्ति का उत्सव है।
यह पर्व सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और विश्वास में निहित होता है।
परिवार में सामंजस्य और वैवाहिक संबंधों में मधुरता बनाए रखने का यह एक सुंदर माध्यम है।
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नारी की श्रद्धा, सौभाग्य और आत्मबल का उत्सव है —
“जहाँ नारी है, वहाँ श्रद्धा है; जहाँ श्रद्धा है, वहीं सौभाग्य है।”
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Sunday, October 5, 2025

त्यौहार पर मिलावटी मिठाइयों के ज़हर से सावधान

त्यौहार  पर मिलावटी मिठाइयों के ज़हर से सावधान
      - डॉ राजेश बतरा 
भारत विविधताओं का देश है जहाँ हर मौसम, हर अवसर और हर संस्कृति को उत्सव का रूप दिया जाता है। दीपावली, दशहरा, होली, रक्षाबंधन, ईद, क्रिसमस और कई अन्य पर्व पूरे देश में बड़े उल्लास और उमंग से मनाए जाते हैं। इन त्योहारों में मिठाइयों का विशेष महत्व होता है। चाहे रिश्तेदारों को उपहार देना हो या मेहमानों का स्वागत करना, मिठाई बिना हर उत्सव अधूरा सा लगता है। परंतु आजकल इन मिठाइयों की मिठास में कड़वाहट घुल रही है। बाजार में बढ़ती मिलावटखोरी के कारण त्योहारों की खुशी स्वास्थ्य पर भारी पड़ने लगी है।

त्योहारों के सीजन में मिठाइयों की मांग अचानक कई गुना बढ़ जाती है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए कुछ लालची व्यापारी शुद्धता और गुणवत्ता की अनदेखी करके मिठाइयों में मिलावट करने लगते हैं। यही कारण है कि दूध से बनी मिठाइयों में सिंथेटिक दूध, खोया की जगह स्टार्च, चाँदी के वर्क की जगह एल्युमिनियम का पत्ता, और स्वाद व रंग बढ़ाने के लिए हानिकारक रसायनों का प्रयोग धड़ल्ले से होने लगा है। यह सब दिखने में भले आकर्षक लगे, पर शरीर के लिए जहर साबित होता है।
मिठाइयों में मिलावट के सामान्य रूप
मिलावटी दूध और खोया – दूध से बनी मिठाइयों में अक्सर सिंथेटिक दूध या साबुन-यूरिया मिला दूध इस्तेमाल किया जाता है। खोया की जगह स्टार्च, आलू या सिंथेटिक पाउडर का प्रयोग होता है।
रंग और फ्लेवर – मिठाइयों को आकर्षक दिखाने के लिए आर्टिफिशियल रंग और एसेंस मिलाए जाते हैं। इनमें से कई रंग औद्योगिक ग्रेड के होते हैं जो शरीर के लिए बेहद हानिकारक हैं।
चाँदी का वर्क – असली चाँदी का वर्क महंगा होता है। इसलिए सस्ते व्यापारी इसके बदले एल्युमिनियम का वर्क चढ़ा देते हैं, जो आंतों और लीवर पर बुरा असर डालता है।
घी और तेल में मिलावट – लड्डू, जलेबी या नमकीन में अक्सर घी की जगह सस्ता तेल, या पुराने बासी तेल का उपयोग होता है।
कृत्रिम मिठास – चीनी महँगी होने या कम मिठास में अधिक असर लाने के लिए सैकरिन या साइक्लेमेट जैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर का प्रयोग किया जाता है।
स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
त्योहार की खुशियाँ मिलावटी मिठाई खाकर तुरंत बीमार कर सकती हैं और कई बार यह गंभीर रोगों को जन्म देती हैं।
पाचन तंत्र की गड़बड़ी – दस्त, उल्टी, पेट दर्द और गैस जैसी समस्याएँ सबसे पहले होती हैं।
लीवर और किडनी पर असर – लगातार मिलावटी पदार्थों का सेवन लीवर को कमजोर करता है और किडनी पर दबाव डालता है।
हृदय रोग का खतरा – आर्टिफिशियल घी और तेल का सेवन हृदय रोग और ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ा देता है।
कैंसर का खतरा – कुछ सिंथेटिक रंग और रसायन कैंसरकारी (Carcinogenic) माने गए हैं।
एलर्जी और स्किन प्रॉब्लम – कृत्रिम रंग और फ्लेवर से त्वचा पर एलर्जी, खुजली और दाने हो सकते हैं।
क्यों होती है मिलावट?
मांग और आपूर्ति का दबाव – त्योहारों पर मांग अचानक बहुत बढ़ जाती है। व्यापारी इस मांग को पूरा करने के लिए शॉर्टकट अपनाते हैं।
अधिक मुनाफे की लालच – शुद्ध दूध, घी और चाँदी महंगे होते हैं। सस्ता विकल्प अपनाकर व्यापारी अधिक मुनाफा कमाते हैं।
निगरानी की कमी – मिलावट पर सख्ती से रोक लगाने वाले नियम तो हैं, लेकिन त्योहार के समय इतनी निगरानी संभव नहीं हो पाती।
ग्राहक की लापरवाही – उपभोक्ता भी केवल दिखावे और सस्ते दाम देखकर मिठाई खरीद लेते हैं, गुणवत्ता की जाँच नहीं करते।
पहचान के सरल उपाय
हर उपभोक्ता थोड़ी सावधानी बरते तो मिलावटी मिठाई से बचा जा सकता है। कुछ घरेलू परीक्षण आसान हैं:
खोया और पनीर – आयोडीन टिंचर की कुछ बूँदें डालने पर यदि नीला रंग आ जाए तो उसमें स्टार्च की मिलावट है।
चाँदी का वर्क – असली चाँदी का वर्क उँगली से मसलने पर आसानी से घुल जाता है जबकि एल्युमिनियम का नहीं।
दूध – पानी मिलावट की जाँच के लिए दूध की एक बूँद चिकनी सतह पर डालें। यदि बूँद बिना फैले नीचे गिरे तो शुद्ध है, अन्यथा मिलावटी।
घी और तेल – घी को फ्रिज में रखने पर यदि यह सफेद होकर जम जाए तो शुद्ध है, पीला या अलग परतों वाला घी मिलावटी होता है।
मिठाइयों में उपयोग होने वाले रसायन और उनके दुष्प्रभाव
त्योहारों पर मिठाइयों को चमकदार और आकर्षक दिखाने के लिए कई तरह के रंग, प्रिज़र्वेटिव, और कृत्रिम रसायन मिलाए जाते हैं। ये देखने में सुंदर होते हैं, लेकिन शरीर के लिए बेहद हानिकारक साबित होते हैं।
1. मेटालिक रंग (Metallic Colors)
कॉपर सल्फेट (Copper Sulphate) – हरे रंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
दुष्प्रभाव: पेट दर्द, उल्टी, लीवर और किडनी को नुकसान।
लेड क्रोमेट (Lead Chromate) – पीला रंग चमकदार बनाने के लिए।
दुष्प्रभाव: दिमाग और नर्वस सिस्टम को नुकसान, बच्चों में मानसिक विकास धीमा होना।
मेटानिल येलो (Metanil Yellow) – हल्दी जैसा पीला रंग लाने के लिए।
दुष्प्रभाव: कैंसरकारी, एलर्जी, ब्लड प्रेशर पर असर।
2. कृत्रिम रंग (Artificial Colors)
Rhodamine B (गुलाबी/लाल रंग के लिए प्रयोग)
दुष्प्रभाव: आँखों में जलन, त्वचा रोग, कैंसर का खतरा।
Malachite Green (हरे रंग के लिए)
दुष्प्रभाव: फेफड़े और लीवर को नुकसान, DNA पर नकारात्मक असर।
3. कृत्रिम मिठास (Artificial Sweeteners)
सैकरिन (Saccharin) – चीनी की जगह इस्तेमाल।
दुष्प्रभाव: ब्लैडर कैंसर का खतरा, पेट में गैस, बच्चों में हाइपरएक्टिविटी।
साइक्लेमेट (Cyclamate)
दुष्प्रभाव: ब्लड प्रेशर असंतुलन, नसों की कमजोरी, कैंसर का खतरा।
4. सस्ते वर्क और धातुएँ
एल्युमिनियम वर्क (Aluminium Foil) – असली चाँदी की जगह।
दुष्प्रभाव: अल्ज़ाइमर और नर्वस सिस्टम पर बुरा असर, पेट की समस्या।
5. मिलावटी घी/तेल
आर्गेनिक सॉल्वेंट व डिटर्जेंट के अवशेष – मिलावटी या सिंथेटिक घी में पाए जाते हैं।
दुष्प्रभाव: हृदय रोग, ब्लड प्रेशर, मोटापा और कोलेस्ट्रॉल की समस्या।
6. अन्य मिलावट
यूरिया – दूध को गाढ़ा और सफेद दिखाने के लिए।
दुष्प्रभाव: किडनी फेल, ब्लड में टॉक्सिक असर।
फॉर्मेलिन (Formalin) – मिठाइयों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए।
दुष्प्रभाव: कार्सिनोजेनिक (कैंसरकारी), सांस लेने में दिक्कत, आँखों में जलन।
त्योहारों पर मिठाइयाँ देखने में भले ही रंग-बिरंगी और स्वादिष्ट लगें, लेकिन यदि उनमें कॉपर सल्फेट, लेड क्रोमेट, मेटानिल येलो, रोडामाइन बी, मालाकाइट ग्रीन, सैकरिन, साइक्लेमेट, एल्युमिनियम वर्क, यूरिया या फॉर्मेलिन जैसे रसायन मिले हों तो यह हमारे शरीर के लिए धीरे-धीरे जहर साबित होते हैं।
बचाव के उपाय
ब्रांडेड और विश्वसनीय दुकानों से खरीदें – खुली और सड़क किनारे बिक रही मिठाइयों से बचें।
ताज़ा बनी मिठाई लें – पैकेट पर निर्माण व समाप्ति तिथि अवश्य देखें।
कम मात्रा में खरीदें – त्योहार पर दिखावे के लिए ढेर सारी मिठाई खरीदने की बजाय कम मात्रा में ताज़ा मिठाई लें।
घर पर मिठाई बनाना – सबसे सुरक्षित और पवित्र तरीका है कि घर पर ही शुद्ध सामग्री से मिठाई बनाई जाए।
प्राकृतिक विकल्प अपनाएँ – गुड़, शहद, मेवे और फल जैसे पारंपरिक विकल्प मिठास के साथ स्वास्थ्य भी देंगे।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
केवल उपभोक्ता ही नहीं, सरकार और समाज की भी ज़िम्मेदारी है कि मिलावटखोरी पर सख्ती से रोक लगे।
खाद्य सुरक्षा विभाग को त्योहारों के पहले और दौरान बाज़ारों में विशेष अभियान चलाना चाहिए।
दुकानदारों पर जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने जैसी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को मिलावट पहचानने की जानकारी दी जानी चाहिए।
स्वयंसेवी संगठन और मीडिया को भी लोगों को शिक्षित करना चाहिए।
निष्कर्ष
त्यौहार हमारी संस्कृति और समाज को जोड़ने का माध्यम हैं। मिठाइयाँ इन त्योहारों की आत्मा हैं, लेकिन जब उनमें मिलावट का जहर घुल जाता है तो यह त्योहारों की खुशी छीन लेता है। इसलिए हर उपभोक्ता को जागरूक होना होगा। थोड़ी सावधानी और समझदारी से हम न केवल अपने परिवार की रक्षा कर सकते हैं बल्कि मिलावटखोरी करने वालों को भी सबक सिखा सकते हैं।
आइए, इस त्यौहार पर यह संकल्प लें कि हम केवल शुद्ध और सुरक्षित मिठाइयों का ही सेवन करेंगे, मिलावटखोरी करने वाले व्यापारियों का बहिष्कार करेंगे और अपने समाज को स्वस्थ एवं सुरक्षित बनाएँगे। तभी त्योहार की असली मिठास हमारे जीवन में बनी रहेगी।

Wednesday, October 1, 2025

विजयादशमी / दशहरा : धर्म, शक्ति और सत्य की विजय

✨ विजयादशमी / दशहरा : धर्म, शक्ति और सत्य की विजय ✨ - डॉ राजेश बतरा 
भारतभूमि पर मनाए जाने वाले पर्व केवल अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन जीने की शिक्षा देने वाले महोत्सव हैं। उनमें से एक है विजयादशमी (दशहरा)। यह दिन धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है।
🔱 विजयादशमी का धार्मिक महत्व
आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, धैर्य और धर्म का मार्ग चुनने वाला अंततः विजय पाता है।
👉 शास्त्रों में कहा गया है –
“सत्यं शिवं सुन्दरं धर्मो विजयते सदा।
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय॥”
अर्थात् सत्य और धर्म की ही सदा विजय होती है।
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📖 विजयादशमी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ
1. श्रीराम और रावण युद्ध
रामायण के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण किया। भगवान श्रीराम ने हनुमान, सुग्रीव और वानरसेना की सहायता से लंका पर चढ़ाई की।
दशमी के दिन उन्होंने रावण का वध किया और धरती को उसके अत्याचार से मुक्त किया।
श्लोक:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥” (गीता 4.7)
अर्थात जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब मैं धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होऊँगा।
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2. माँ दुर्गा और महिषासुर वध
देवताओं को वरदान प्राप्त महिषासुर ने आतंकित कर दिया। तब देवशक्तियों से उत्पन्न माँ दुर्गा ने नौ दिन तक युद्ध कर दशमी के दिन उसका वध किया।
इसी कारण इसे महिषासुर मर्दिनी दिवस भी कहते हैं।
श्लोक:
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
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3. पांडवों की कथा
अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपने शस्त्र शमी वृक्ष में छिपाए थे। विजयादशमी के दिन उन्होंने उन शस्त्रों को पुनः प्राप्त कर उनका पूजन किया और आगे विजय प्राप्त की।
इसलिए इस दिन शस्त्र-पूजन और शमी पूजन की परंपरा है।
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🌿 दशहरे की परंपराएँ और अनुष्ठान
1. रावण दहन – बुराई के प्रतीक रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन।
2. दुर्गा विसर्जन – नवरात्रि के उपरांत माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन।
3. शस्त्र पूजन – सैनिक, व्यापारी और किसान सभी अपने औज़ारों व शस्त्रों की पूजा करते हैं।
4. शमी पूजन – शमी वृक्ष की पूजा कर इसके पत्तों को मित्रों व परिवार में बाँटना शुभ माना जाता है
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🌸 विजयादशमी का दार्शनिक संदेश
सत्य और धर्म की जीत होती है, चाहे बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो।
नारी शक्ति का सम्मान और पूजन समाज को संतुलित बनाता है।
धैर्य, साहस और आत्मबल से ही जीवन के संघर्ष जीते जा सकते हैं।
श्लोक:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥” (गीता 6.5)
अर्थात् मनुष्य को अपने आत्मबल से स्वयं को उठाना चाहिए।
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✨ निष्कर्ष
विजयादशमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण का उत्सव है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि –
अन्याय का विरोध करो,
सत्य का मार्ग चुनो,
और जीवन में हर अंधकार को प्रकाश में बदलो।
“जयते सत्यं, जयते धर्मः, जयते विजयादशमी॥”
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