भारतभूमि पर मनाए जाने वाले पर्व केवल अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन जीने की शिक्षा देने वाले महोत्सव हैं। उनमें से एक है विजयादशमी (दशहरा)। यह दिन धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है।
🔱 विजयादशमी का धार्मिक महत्व
आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, धैर्य और धर्म का मार्ग चुनने वाला अंततः विजय पाता है।
👉 शास्त्रों में कहा गया है –
“सत्यं शिवं सुन्दरं धर्मो विजयते सदा।
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय॥”
अर्थात् सत्य और धर्म की ही सदा विजय होती है।
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📖 विजयादशमी से जुड़ी प्रमुख कथाएँ
1. श्रीराम और रावण युद्ध
रामायण के अनुसार रावण ने माता सीता का हरण किया। भगवान श्रीराम ने हनुमान, सुग्रीव और वानरसेना की सहायता से लंका पर चढ़ाई की।
दशमी के दिन उन्होंने रावण का वध किया और धरती को उसके अत्याचार से मुक्त किया।
श्लोक:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥” (गीता 4.7)
अर्थात जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब मैं धर्म की स्थापना हेतु अवतरित होऊँगा।
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2. माँ दुर्गा और महिषासुर वध
देवताओं को वरदान प्राप्त महिषासुर ने आतंकित कर दिया। तब देवशक्तियों से उत्पन्न माँ दुर्गा ने नौ दिन तक युद्ध कर दशमी के दिन उसका वध किया।
इसी कारण इसे महिषासुर मर्दिनी दिवस भी कहते हैं।
श्लोक:
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
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3. पांडवों की कथा
अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपने शस्त्र शमी वृक्ष में छिपाए थे। विजयादशमी के दिन उन्होंने उन शस्त्रों को पुनः प्राप्त कर उनका पूजन किया और आगे विजय प्राप्त की।
इसलिए इस दिन शस्त्र-पूजन और शमी पूजन की परंपरा है।
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🌿 दशहरे की परंपराएँ और अनुष्ठान
1. रावण दहन – बुराई के प्रतीक रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन।
2. दुर्गा विसर्जन – नवरात्रि के उपरांत माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन।
3. शस्त्र पूजन – सैनिक, व्यापारी और किसान सभी अपने औज़ारों व शस्त्रों की पूजा करते हैं।
4. शमी पूजन – शमी वृक्ष की पूजा कर इसके पत्तों को मित्रों व परिवार में बाँटना शुभ माना जाता है
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🌸 विजयादशमी का दार्शनिक संदेश
सत्य और धर्म की जीत होती है, चाहे बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो।
नारी शक्ति का सम्मान और पूजन समाज को संतुलित बनाता है।
धैर्य, साहस और आत्मबल से ही जीवन के संघर्ष जीते जा सकते हैं।
श्लोक:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥” (गीता 6.5)
अर्थात् मनुष्य को अपने आत्मबल से स्वयं को उठाना चाहिए।
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✨ निष्कर्ष
विजयादशमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक जागरण का उत्सव है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि –
अन्याय का विरोध करो,
सत्य का मार्ग चुनो,
और जीवन में हर अंधकार को प्रकाश में बदलो।
“जयते सत्यं, जयते धर्मः, जयते विजयादशमी॥”
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