Thursday, October 9, 2025

करवा चौथ : सौभाग्य, प्रेम और विश्वास का पवित्र पर्व

 करवा चौथ : सौभाग्य, प्रेम और विश्वास का पवित्र पर्व
         - डॉ राजेश बतरा 
भारत की संस्कृति पर्वों और परंपराओं से भरी हुई है। यहाँ हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई जीवन-दर्शन और भावनात्मक संदेश छिपा होता है। इन्हीं में से एक है करवा चौथ, जो विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाने वाला व्रत है।
🌸 करवा चौथ का अर्थ
‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का छोटा घड़ा (जल पात्र) और ‘चौथ’ का अर्थ है ‘चतुर्थी’। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चौथ को रखा जाता है। इस दिन महिलाएँ पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।
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🌅 करवा चौथ की परंपरा और विधि
इस दिन विवाहित स्त्रियाँ प्रातःकाल ही सरगी ग्रहण करती हैं। यह सरगी प्रायः सास द्वारा बहू को दी जाती है, जिसमें फल, मिठाई, सेवईं और श्रृंगार की वस्तुएँ होती हैं।
सूर्योदय के बाद महिलाएँ न तो जल ग्रहण करती हैं, न अन्न — वे पूरे दिन अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखती हैं।
शाम को महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं, कथा सुनती हैं, करवा की पूजा करती हैं और रात में जब चाँद निकलता है, तो चलनी से चाँद और पति का मुख देखकर अर्घ्य देती हैं।
इसके बाद पति द्वारा जल ग्रहण कराके व्रत खोला जाता है। यह पल पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक बन जाता है।
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करवा चौथ की पौराणिक कथा : वीरवती की कहानी
करवा चौथ से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा रानी वीरवती की है।
वीरवती सात भाइयों की इकलौती बहन थी। अपने पहले करवा चौथ व्रत पर उसने कठोर उपवास रखा। शाम तक वह अत्यधिक भूख-प्यास से व्याकुल हो गई।
उसके भाइयों ने छलपूर्वक दीपक जलाकर दूर से चाँद का आभास कराया ताकि बहन व्रत तोड़ दे।
जैसे ही वीरवती ने जल पिया, उसे संदेश मिला कि उसके पति का निधन हो गया है।
वह विलाप करती हुई माता पार्वती के चरणों में जा गिरी। माता ने उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया और उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया।
तब से यह व्रत “अखंड सौभाग्य” का प्रतीक बन गया।
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 अन्य धार्मिक संदर्भ

महाभारत काल में द्रौपदी ने भी यह व्रत रखा था। जब अर्जुन हिमालय में तपस्या कर रहे थे, तब पांडव कठिनाइयों में फँस गए। श्रीकृष्ण के निर्देश पर द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत किया, जिससे सभी संकट दूर हो गए।

एक अन्य कथा में कहा गया है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे — यह भी स्त्री की शक्ति और अटूट निष्ठा का प्रतीक है।
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करवा चौथ की पूजा विधि :
1. सुबह सरगी ग्रहण करें।
2. सोलह श्रृंगार करें और करवा में जल, फल, मिठाई रखें।
3. दोपहर या शाम को करवा चौथ कथा सुनें।
4. रात्रि में चाँद निकलने पर चलनी से चाँद और पति का मुख देखें।
5. पति से जल ग्रहण कर उपवास खोलें और आशीर्वाद लें।
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करवा चौथ का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व
करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी छिपा है।
🌺 पारिवारिक एकता का प्रतीक – इस दिन परिवार में प्रेम और सम्मान का माहौल बनता है।
🌺 स्त्री की आत्मशक्ति का प्रदर्शन – उपवास आत्मसंयम और दृढ़ निश्चय का प्रतीक है।
🌺 शारीरिक लाभ – एक दिन का निर्जला व्रत शरीर से विषैले तत्व निकालने में सहायक होता है।
🌺 प्रेम और विश्वास का पर्व – यह पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत करता है।
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 आधुनिक युग में करवा चौथ
आज के समय में करवा चौथ की परंपरा और भी सुंदर रूप में विकसित हुई है।
अब कई पति भी अपनी पत्नियों के लिए उपवास रखते हैं — जिससे यह पर्व आपसी समानता और पारस्परिक प्रेम का प्रतीक बन गया है।
सोशल मीडिया और टीवी धारावाहिकों ने इसे रोमांटिक रूप में लोकप्रिय बनाया है, लेकिन इसके पीछे की सच्ची भावना अब भी वही है —
त्याग, श्रद्धा और प्रेम की अनूठी मिसाल।
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🕉️ करवा चौथ के पूजन मंत्र
पूजन के समय प्रचलित एक प्रमुख मंत्र है —
“मम सुखसौभाग्यसिद्ध्यर्थं चंद्रदर्शनं करिष्ये।”
(मैं अपने पति के सुख और सौभाग्य की सिद्धि के लिए चंद्र दर्शन कर रही हूँ।)
एक और शुभ प्रार्थना —
 “धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों फल मुझे प्राप्त हों और मेरे पति की आयु लंबी हो।”
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इस प्रकार करवा चौथ केवल व्रत नहीं, बल्कि भारतीय नारी के प्रेम, निष्ठा और शक्ति का उत्सव है।
यह पर्व सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और विश्वास में निहित होता है।
परिवार में सामंजस्य और वैवाहिक संबंधों में मधुरता बनाए रखने का यह एक सुंदर माध्यम है।
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नारी की श्रद्धा, सौभाग्य और आत्मबल का उत्सव है —
“जहाँ नारी है, वहाँ श्रद्धा है; जहाँ श्रद्धा है, वहीं सौभाग्य है।”
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