Wednesday, October 22, 2025

गोवर्धन पूजन : प्रकृति, श्रद्धा और संतुलन का पर्व -डॉ राजेश बतरा

🌿 गोवर्धन पूजन : प्रकृति, श्रद्धा और संतुलन का पर्व
भारत वर्ष की धार्मिक परंपराओं में प्रत्येक पर्व का कोई न कोई गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ निहित है। दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजन या अन्नकूट उत्सव भी ऐसा ही एक पावन पर्व है, जो मानव और प्रकृति, देवता और जीवों के बीच सामंजस्य का सन्देश देता है। यह केवल पूजा नहीं, बल्कि आभार प्रकट करने का उत्सव है — प्रकृति के प्रति, अन्न के प्रति, पशु के प्रति और अंततः उस ब्रह्म स्वरूप श्रीकृष्ण के प्रति, जिन्होंने संसार को अहंकार त्यागने का सन्देश दिया।
🌾 गोवर्धन पूजन का इतिहास
गोवर्धन पूजा की कथा श्रीमद्भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण और विष्णु पुराण में विस्तार से वर्णित है। द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण नंदगांव में बालरूप में निवास करते थे, तब वहाँ के लोग प्रतिवर्ष इंद्र देव की पूजा करते थे। उन्हें विश्वास था कि इंद्र की कृपा से वर्षा होती है और अन्न उत्पन्न होता है। परन्तु श्रीकृष्ण ने समझाया कि वास्तव में वर्षा प्रकृति के चक्र का भाग है और गोवर्धन पर्वत, गौमाता तथा पर्यावरण ही हमारे जीवन का आधार हैं।
उन्होंने ब्रजवासियों से कहा — “हमारी खेती, हमारी गायें और हमारे जंगल — ये सब गोवर्धन पर्वत की देन हैं। हमें इंद्र नहीं, गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए।”
जब ब्रजवासी इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन का पूजन करने लगे तो इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज में भयंकर वर्षा प्रारंभ कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उँगली पर गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की। अंततः इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजा का विधान चला।
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🪔 गोवर्धन पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्त्व
1. प्रकृति के प्रति आभार — यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन के हर अंश के पीछे प्रकृति की भूमिका है।
2. अहंकार का विनाश — इंद्र का अहंकार श्रीकृष्ण द्वारा पराजित हुआ। यह सन्देश है कि शक्ति से नहीं, विनम्रता से विजय होती है।
3. सामूहिकता का प्रतीक — इस दिन पूरा समाज मिलकर गोवर्धन बनाता है, अन्नकूट तैयार करता है, जिससे एकता का भाव जाग्रत होता है।
4. गौसेवा और अन्न का सम्मान — गाय, अन्न, जल और पर्वत — ये सब जीवन के आधार हैं; उनका पूजन पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है ।
🏞️ गोवर्धन पूजा की परंपरा और विधि
दीपावली के अगले दिन प्रातःकाल घर के आंगन या मंदिर में गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप बनाया जाता है। इसे मिट्टी, गोबर या गोमय से बनाते हैं। उसके चारों ओर छोटी-छोटी गौ-प्रतिमाएँ, पत्तियाँ, पुष्प और अन्नकूट (विभिन्न पकवानों का ढेर) सजाया जाता है।
पूजन विधि:
गोमय से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसके चारों ओर दीपक जलाए जाते हैं।
जल, अक्षत, पुष्प, दूध, दही, घी, अन्नकूट और तुलसीदल से पूजन किया जाता है।
गोवर्धन की परिक्रमा करते हुए भक्त कहते हैं — “गोवर्धन धारणं वंदे, गोपालं गोविपालकम्।”
पूजा के पश्चात “अन्नकूट प्रसाद” सबमें बांटा जाता है।
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📜 शास्त्रीय सन्दर्भ और श्लोक
गोवर्धन पूजा के महत्व का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण (दशम स्कंध, अध्याय 24–27) में मिलता है। वहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं— “इदं गोवर्धनं नाम पर्वतं हरिदेवतम्।
पूजयित्वा तु देवानां पूजां सम्यक् करिष्यथ।”
(भागवत 10.24.26)
अर्थ — यह गोवर्धन पर्वत हरिदेव के समान पूजनीय है। इसकी पूजा करने से सभी देवताओं की पूजा हो जाती है।
एक अन्य स्थान पर श्रीकृष्ण का वचन है — “न मे प्रियं चतुर-वेदि ब्राह्मणो भू-रि-दक्षिणः।
यथा गोवर्धनं नाम मम भक्त्योपपादितम्॥”
(भागवत 10.24.45)
— अर्थात मेरे लिए कोई ब्राह्मण, कोई यज्ञ, कोई दान उतना प्रिय नहीं जितना यह गोवर्धन पूजा मेरे भक्तों द्वारा की गई है।
🐄 गौसेवा का आध्यात्मिक पक्ष ; 
गोवर्धन पूजा में गौमाता की विशेष आराधना की जाती है। गौ माता की पूजा हमारी संस्कृति की एक उत्कृष्ट उपलब्धि है। गौ माता में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास कहा गया है। हिन्दू धर्म में गौ को “माता” कहा गया है, क्योंकि वह अन्न, दूध, घी और औषधीय तत्वों की स्रोत है।
शास्त्रों में कहा गया है — “गावो विश्वस्य मातरः।”
— अर्थात् गायें सम्पूर्ण जगत की माताएँ हैं।
गोवर्धन पूजा का भाव यह है कि हम गौ, गोवर्धन और गोपाल (श्रीकृष्ण) — तीनों के प्रति श्रद्धा रखें। यह त्रिवेणी ही समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का आधार है।
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🌍 पर्यावरणीय और सांस्कृतिक मूल्य
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का भी प्रतीक है। आज के युग में जब मनुष्य प्रकृति से दूर हो रहा है, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि —
पर्वत, नदियाँ, पशु, वनस्पति सब जीवन का हिस्सा हैं।
प्रकृति का सम्मान करना ही ईश्वर की सच्ची पूजा है।
गोवर्धन पूजा, पारिस्थितिक संतुलन की परंपरा का जीवंत उदाहरण है।
श्रीकृष्ण का यह संदेश कालजयी है — “यः सर्वत्र मां पश्यति, सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि, स च मे न प्रणश्यति॥”
(गीता 6.30)
— जो व्यक्ति सर्वत्र मुझे देखता है, वह कभी मुझसे अलग नहीं होता।
इस दृष्टि से गोवर्धन पूजा मानवता को अद्वैत भाव की ओर ले जाती है।
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🌿 अन्नकूट महोत्सव
गोवर्धन पूजा के दिन “अन्नकूट” का विशेष आयोजन होता है। “अन्नकूट” का अर्थ है — अन्न का पर्वत। मंदिरों और घरों में सैकड़ों प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
वृंदावन, मथुरा, नाथद्वारा, द्वारका आदि में इस दिन भव्य अन्नकूट दर्शन होते हैं। मंदिरों में प्रसाद वितरण और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। यह सामूहिकता और समानता का प्रतीक है — जहाँ सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ बैठकर अन्न ग्रहण करते हैं।
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🕉️ आध्यात्मिक और दार्शनिक महत्त्व
गोवर्धन पूजा का सबसे बड़ा संदेश है — “प्रकृति में ईश्वर का दर्शन”। श्रीकृष्ण ने यह स्पष्ट किया कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर कण में, हर वृक्ष, हर प्राणी और हर पर्वत में विद्यमान हैं।

इस पर्व का आध्यात्मिक मर्म है —
1. अहंकार त्याग — इंद्र का अहंकार प्रकृति द्वारा झुका दिया गया।
2. सद्भावना और सहयोग — जब ब्रजवासी एकजुट हुए तभी संकट टला।
3. भक्ति और संरक्षण का समन्वय — भक्ति तभी पूर्ण है जब उसमें संरक्षण का भाव हो।
4. कर्म और भक्ति का संगम — कृष्ण ने कर्म के साथ भक्ति का आदर्श प्रस्तुत किया।
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📖 श्लोक और प्रार्थना

भक्तजन गोवर्धन पूजा के दिन निम्न श्लोकों से भगवान को स्मरण करते हैं —  “गोवर्धन धराधीशं भक्ताभीष्ट प्रदायकम्।
गोविंदं गोपिकानाथं नमामि श्रद्धयान्वितः॥”
अर्थ — जो भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं, उन गोवर्धनधर श्रीगोविंद को मैं श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता हूँ। “जय गोवर्धन धारक जय गोविंद गोपाल।
भक्तन के संकट हरनें, नाम तिहारो नंदलाल॥”
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🌺 नैतिक एवं जीवन-मूल्य
1. प्रकृति की पूजा = जीवन की रक्षा
2. सहयोग और एकता = समाज की शक्ति
3. विनम्रता और भक्ति = सफलता की कुंजी
4. अन्न, जल और पशु का आदर = सच्ची समृद्धि
गोवर्धन पूजा का हर तत्व जीवन के इन मूल्यों की याद दिलाता है।
इस प्रकार गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के मधुर संबंधों का उत्सव है। श्रीकृष्ण ने इस पर्व के माध्यम से यह सिखाया कि ईश्वर की आराधना केवल विधि-विधान नहीं, बल्कि जीवों, प्रकृति और पर्यावरण की सेवा है।
आज के युग में जब प्रदूषण, पर्यावरण विनाश और स्वार्थ की भावना बढ़ रही है, तब गोवर्धन पूजा का सन्देश पहले से अधिक प्रासंगिक है —
> “जो प्रकृति का सम्मान करता है, वही ईश्वर का सच्चा भक्त है।”
अतः आइए, हम इस गोवर्धन पूजा पर संकल्प लें —
हम प्रकृति, गाय, अन्न और पर्यावरण की रक्षा करेंगे,
कृष्णभाव से जीवन जिएँगे और
गोवर्धन पर्वत की भांति धैर्य, स्थिरता और संरक्षण का प्रतीक बनेंगे।
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॥ जय श्रीकृष्ण ॥
॥ जय गोवर्धन महाराज की जय ॥

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